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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ जुलाई-सितम्बर २००८
वर्तमान संदर्भ में अनेकान्तवाद की प्रासंगिकता
डॉ० श्याम किशोर सिंह*
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में जब जैनधर्म महावीर द्वारा विवेचित हुआ तब उसमें इहलौकिक जीवन के साथ-साथ पारलौकिक सामर्थ्य की एक नई अनुभूति का स्वर आया और फिर कर्मस्थली से ज्ञान की वह धारा प्रवाहित हुई जो आज भी मानवीय जीवन को आप्लावित कर रही है। जैन धर्म-दर्शन एक जीवन-दृष्टि है जिसका मूल मंत्र है- आचार में अहिंसा, विचार में अनेकान्त और समाज में अपरिग्रह।
आज विश्व में चारों ओर वैचारिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष अपनी चरम सीमा पर है। ऐसी परिस्थिति में भगवान् महावीर द्वारा प्रस्तुत 'अनेकान्त' के सिद्धान्त पर चर्चा करना प्रासंगिक हो गया है। अनेकान्तवाद जैन दर्शन की आधारशिला है। यह एक व्यावहारिक सिद्धान्त है जिसका सम्बन्ध धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, वैचारिक आदि सभी क्षेत्रों से है। प्रेम, सहिष्णुता, सद्भावना और समानता ही इसका मूल संदेश है। जैन दर्शन के अनुसार जो अपने को ही ऐकान्तिक रूप से सही मानते हैं और दूसरे के मन्तव्यों को गलत समझते हैं वे वस्तुतः सत्य का अनादर करते हैं, क्योंकि सत्य अनन्तमुखी है। अत: सापेक्ष स्तर पर सत्य में निहित विभिन्न संदर्भो को देखा जाए और उन संदर्भो में अन्तर्निहित रूपों के द्वारा उसे सम्मानित किया जाए तो उसी में उसकी मूल्यवत्ता है।
परम्परा की दृष्टि से अनेकान्त के प्रथम उपदेशक भगवान् ऋषभदेव माने जाते हैं, परन्तु आचार्य बलदेव उपाध्याय ने अनेकान्तवाद के उद्भावक के रूप में भगवान पार्श्वनाथ को स्वीकार किया है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अनेकान्त के प्रवर्तक भगवान् महावीर हैं। भगवतीसूत्र से ज्ञात होता है कि भगवान् महावीर ने अनेकान्तवाद को प्रतिष्ठित किया है। भगवान् महावीर का काल वैचारिक क्रांति का काल था। उस समय भिन्न-भिन्न मतों का प्रचार-प्रसार था। प्रत्येक मत की दृष्टि से दूसरा मत असत्य था। सभी एकान्तवादी दृष्टि को अपना रहे थे। दर्शन के क्षेत्र में भी आपसी विरोध तथा अशांति की स्थिति थी। इस वैचारिक अशांति से व्यावहारिक जगत् भी प्रभावित था। एकान्तवाद के इस शत्रुतापूर्ण व्यवहार को देखकर महावीर ने इस क्लेश का कारण जानना चाहा। सत्यता का दंभ भरनेवाले दो विरोधी पक्ष आपस में लड़ते क्यों हैं? यदि * व्याख्याता, दर्शनशास्त्र विभाग, अवध बिहारी सिंह महाविद्यालय, लालगंज (वैशाली)
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