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संस्कृत छाया :
सम्यग् निरूपितः स निद्रायां प्रसुप्तस्तत्र पुरूषः ।
ज्ञातं सुदर्शनया यथा एष न भवति मे पुत्रः ।। १६३ ।।
गुजराती अर्थ :- त्यां निद्रार्मा सूतेला ते पुरुषने सारी रीते जोयो तेथी सुदर्शनाएर प्रमाणे जाण्यु के आ मारो पुत्र नथी ।
हिन्दी अनुवाद : और वहाँ निद्राधीन पुरुष को अच्छी तरह देखा, और देखकर सुदर्शना ने निश्चित किया कि यह मेरा पुत्र नहीं है।
गाहा :
तत्तो सुदंसणाए पोक्करियं दोहरेण सद्देण । धावह धावह लोया! एस अउव्वो नरो कोवि । । १६४ । । संस्कृत छाया :- परपुरुष कोण?
ततः सुदर्शनया पूत्कृतं दीर्घेण शब्देन ।
धावत धावत लोकाः ! एषोऽपूर्वोनरः कोऽपि । । १६४।।
गुजराती अर्थ :- त्यार पछी सुदर्शनाए मोटा अवाज बड़े पोकार कर्यो है ! लोको! दोडो ! दोडो ! आ कोई नवो ज पुरुष छे ।
हिन्दी अनुवाद :- बाद में सुदर्शना ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया। अरे! अरे ! लोगों ! दौड़ो ! यह कोई अन्य पुरुष है।
गाहा :
अम्ह धरम्मि पविट्ठो जारो चोरोव्व नूण होऊण ।
एवं सुदंसणाए विहियं सोऊण हलबोलं । । १६५ । । रे! लेह लेह धावह कत्थ गओ कत्थ अच्छइ निलुक्को । एमाइ वाहरंतो समुट्ठिओ परियणो सव्वो ।। १६६ ।। संस्कृत छाया :
अस्माकं गृहे प्रविष्टो जार चौरइव नूनं भूत्वा । एवं सुदर्शनया विहितं श्रुत्वा कलकलम् ।।१६५|| रे लात ! लात ! धावत ! कुत्र गतः कुत्राऽऽस्ते निलीनः । एवमादि व्याहरन् समुत्थितः परिजनः सर्वः ।।१६६।। गुजराती अर्थ :- निश्चे आ जार पुरुष अमारा घरमां चोर जेवो थड़ने प्रवेशेलो छे। आ प्रमाणे सुदर्शनाए करेल कोलाहल ने सांभळी ने अरे ! पकड़ो! पकड़ो! दोड़ो! चोर क्यां गयो ! क्यां बेठो छे? इत्यादि बोलता बधो सेवक वर्ग उठयो ।
हिन्दी अनुवाद :- निश्चित ही यह कोई जार पुरुष हमारे घर में चोर की तरह आया है। इस प्रकार सुदर्शना का कोलाहल सुनकर - अरे ! रे! पकड़ो! पकड़ो! दौड़ो ! चोर कहाँ गया? कहाँ बैठा है ? इस प्रकार बोलते हुये सभी सेवकवर्ग उठ गये ।
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