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________________ गाहा : सा सणियं उट्ठविया भणइ किमागमण-कारणं सुण्हे!। तत्तो य वसुमईए जहट्ठियं साहियं सव्वं ।।१६०।। संस्कृत छाया : सा शनै-रुत्थापिता भणति किमागमनकारणं स्नुषे?। ततश्च वसमत्या यथास्थितं कथितं सर्वम् ।।१६०।। गुजराती अर्थ :- हवे धीमेथी उठाडायेली ते सासुए पुछयुं, हे वहु! आववानुं शुं कारण छे? त्यारे वसुमतीए पूरी हकीकत जणावी दीधी। हिन्दी अनुवाद :- तथा धीरे से सासूजी को उठाई तब सासू ने पूछा - हे! बहू! आने का कारण क्या है? तब वसुमती ने सभी बात बता दी। गाहा : भणियं सुदंसणाए न संभवो अत्थि इत्थ अन्नस्स । निद्दा-वसओ होज्जा तुह जाओ विन्भमो एसो ।।१६१।। संस्कृत छाया : भणितं सुदर्शनया न संभवोऽस्त्यत्रान्यस्य। निद्रावशतो भवेत् ते जातो विभ्रम एषः ।।१६१।। गुजराती अर्थ :- त्यारे सुदर्शनाए कहयु, अहीं अन्यपुरुषनो संभव ज नथी, निद्राना वश थी तने आ भ्रम थयो हशे! हिन्दी अनुवाद :- तब सुदर्शना ने कहा - 'यहाँ अन्य पुरुष का आना ही संभव नहीं है। निद्रा के कारण तुझे भ्रम हुआ लगता है! गाहा : भणियं च वसुमईए अंबि! सयं चेव ता निरूवेसु । एवं तीए भणिया सुदंसणा लहु गया तत्थ ।।१६२।। संस्कृत छाया : भणितं च वसुमत्या अम्ब! स्वयमेव तर्हि निरूपय | एवं तया भणिता सुदर्शना लघु गता तत्र।।१६२।। गुजराती अर्थ :- वसुमतीए कहयुं - हे माता! तो आप स्वयं ज जुवो! आ प्रमाणे तेणीना द्वारा कहेवायेली सुदर्शना जल्दी थी त्यां गई! हिन्दी अनुवाद :- तब वसुमती ने कहा - 'हे! माताजी! आप स्वयं ही आकर देखिये! इस प्रकार उसके कहने पर सुदर्शना जल्दी से वहाँ गई। गाहा : सम्मं निरूविओ सो निदाए पसुत्तओ तहिं पुरिसो। नायं सुदंसणाए जह एस न होइ मह पुत्तो ।।१६३।। 370 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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