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गाहा :
मिलिओ य भूरि-लोगो किं किं एयंति एव जंपंतो।
सिट्ठी समुद्ददत्तो भणइ पिए! केण मुसिया सि? ।।१६७।। संस्कृत छाया :
मिलितश्च भूरि लोकः किं किं - मेतदिति एवं जल्पन्।
श्रेष्ठी समद्रदत्तो भणति प्रिये! केन मषिताऽसि? ||१६७।। गुजराती अर्थ :- अने घणा लोको, शुं थयु! शुं धयु? ए प्रमाणे बोलता भेगा धया, श्रेष्ठ समुद्रदत्ते पुछयं, हे प्रिये! तने कोणे ठगी? हिन्दी अनुवाद :- और बहत लोक - अरे! क्या हुआ? क्या हुआ? इस प्रकार बोलते हुए इकट्ठे होकर श्रेष्ठि समुद्रदत्त ने पूछा - हे प्रिये! किसने चोरी की है? गाहा :
सोवि हु सयणीयाओ समुट्ठिओ कल-यलं निसामित्ता।
वज्ज्इ केण अंबे! मुसिया, जं एवमुल्लवसि! ।।१६८।। संस्कृत छाया :
सोऽपि खलु शयनीयात् समुत्थितः कलकलं निशम्य ।
कथयति केन अम्ब! मषिता यदेवमुल्लपसि ।।१६८।। गुजराती अर्थ :- ते पण कोलाहल सांभळीने शय्या माथी उठ्यो, अने पुछयु हे माता! कोणे चोटी करी छे? जेथी तु आ प्रमाणे बोले छे! हिन्दी अनुवाद :- और वह भी कोलाहल सुनकर शय्या में से उठा, और पूछने लगा हे माता, किसने चोरी की है? जिससे तूं इस प्रकार बोलती है। गाहा :
न हु इत्थ कोवि दीसइ दुट्ठ-मई कीस अंबि! उव्विग्गा?।
एवं तु तेण भणिया सुदंसणा एवमुल्लवइ ।।१६९!। संस्कृत छाया :
न खल्वत्र कोऽपि दृश्यते दुष्टमतिः कस्माद् अम्ब! उद्विग्ना?|
एवं तु तेन भणिता सुदर्शना एवमुल्लपति ।।१६९।। गुजराती अर्थ :- अहीं कोई दुष्टमतिवाळो देखातो नथी, तो हे माता! शा कारणथी तुं गभरायेली छे? तेना वड़े आ रीते कहेवायेली सुदर्शना कहे छे! हिन्दी अनुवाद :- हे माता! यहाँ तो दुष्टमतिवाला कोई दिखाई नहीं देता है, तो फिर तूं किस हेतु डरती है उसके इस प्रकार कहने पर सुदर्शना कहती है। गाहा :
को सि तुमं कस्स सुओ कीस गिहे मज्झ आगओ पाव!?। हा! धिट्ठ! किंनिमित्तं अंबित्ति ममं समुल्लवसि? ।। १७०।।
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