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________________ संस्कृत छाया : अन्यदिने प्रियसखी प्रभातसमये धारिणी-नामा। सूर्यप्रभस्य दुहिता समागता मत-पार्श्वे ।।१२३।। गुजराती अर्थ :- व्यार पछी अन्य दिवसे सूर्यप्रभनी पुत्री धारिणी नामनी प्रिय सखी मारी पासे आवी। हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् अन्य दिन सूर्यप्रभ की पुत्री धारिणी मेरी प्रिय सखी मेरे पास आयी। गाहा : भणइ य किमज्ज पिय-सहि! हियव्व विक्कियव्व वुन्नव्व । दीससि अन्न-मणा विव विद्दाण-मुहा ससोगिल्ला ।।१२४।। संस्कृत छाया : भणति च किमद्य प्रियसखे! हृतेव विकृतेव भीतेव। दृश्यसे अन्यमना इव विद्राणमुखा सशोकवती ।। १२४।। गुजराती अर्थ :- अने मने पूछयुं हे ! प्रिय सखी ! तुं आजे जाणे अपहरण करायेली, विकारने पामेली, भयभीत थयेली, शून्यमनस्कवाळी, शोकवाळी अने करमायेला मुखवाली केम देखाय छे? हिन्दी अनुवाद :- और मुझसे पूछा, हे प्रिय सखी! तुम आज मानो अपहरण की गई, विकार को पाई हुई, भयभीत, शून्यचित्त वाली, शोकयुक्त और मुरझाये हुए मुखवाली लगती हो? गाहा :चिर-आगयावि पिय-सहि! कीस न संभासिया अहं तुमए? । ता भणसु सोग-कारणमेयं जं तुज्झ संजायं? ।।१२५।। संस्कृत छाया :चिरमागतापि प्रियसखे ! कस्माद् न सम्भाषिताऽहं त्वया? | ततो भण शोककारण - मेतद् यत्ते सजातम् ||१२५।। गुजराती अर्थ :- हे प्रिय सखी ! घणा समये हुं आवी होवा छतां तें मने केम न बोलावी? तेथी तारा शोकनु कारण जे थयुं होय ते तुं मने कहे? हिन्दी अनुवाद :- प्रिय सखी! बहुत दिनों के बाद तेरे पास आने पर भी तू मूझे क्यों बुलाती नहीं हो? तेरे शोक का कारण जो है वह मुझे बताओ। गाहा : एवं च पिय-सहीए भणियाए मए तया समुल्लवियं । सम्ममुवलक्खियं ते धारिणि! निसुणेसु वुत्तत्तं ।। १२६।। 359 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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