________________
संस्कृत छाया :
एवं च प्रियसख्या भणितया मया तदा समुल्लापितम्।
सम्यगुपलक्षितं त्वया धारिणि ! निःशृणु वृत्तान्तम् ।।१२६|| गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे प्रिय सखीए 'कहयुं त्यारे में कहयु', हे धारिणी! तें साची रीते जाण्युं छे, तो तुं हवे वृत्तांत ने सांभळ। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार सखी के कहने पर मैंने कहा - हे धारिणी! तूने अच्छी तरह से मुझे जान लिया है अत: तू वृत्तांत सुन ले। गाहा :
तुज्झेहिं समं पिय-सहि! कीलित्ता ता वियाल-समयम्मि ।
नाणाविह-कोलाहिं समागया नियय-गेहम्मि ।।१२७।। संस्कृत छाया :
युष्माभिः समं प्रियसखे ! क्रीडित्वा तदा विकालसमये ।
नानाविध-क्रीडाभिः समागता निजकगृहे ||१२७।। गुजराती अर्थ :- हे प्रिय सखी ! त्यारे तारी साथे विविध क्रीडाओ रमी ने संध्या समये हुं मारा घेर आवी। हिन्दी अनुवाद :- हे प्रिय सखी! तब तेरे साथ विविध प्रकार की क्रीड़ा करके संध्या समय पर मैं अपने घर आई। गाहा :- प्रियंगुमंजरीनुं रात्रिमा दिव्य दुंदुभि श्रवण
उवरिम- भूमीइ तओ नाणा-मणि-रयण-हेम-मइयम्मि ।
पल्लंके पासुत्ता पवराए हंसतुलीए ।।१२८।। संस्कृत छाया :
उपरिम भूमौ ततो नानामणिरत्नहेममये ।
पर्यढे प्रसुप्ता प्रवरायां हंसतुलिकायाम् ||१२८|| गुजराती अर्थ :- त्यार पछी महेलनी उपरनी भूमि पर विविध प्रकारना मणि-रत्न अने सुवर्णमय पलंगमां, श्रेष्ठ गादी पर हुं सुई गई! हिन्दी अनुवाद :- बाद में महल की छत पर विविध प्रकार के मणिरत्न और सुवर्णमय पलंग में श्रेष्ठ बिस्तर पर मैं सो गई। गाहा :
अह अड्ड- रत्त-समए दुंदुहि-सई सुणित्तु पडिबुद्धा।
पिच्छामि गयण-मग्गं दिव्व-विमाणेहिं संकिन्नं ।। १२९।। संस्कृत छाया :
अथार्धरात्रिसमये दुन्दुभिशब्दं श्रुत्वा प्रतिबुद्धा। प्रेक्षे गगनमार्ग दिव्यविमानैः सङ्कीर्णम् ।।१२९।।
360
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org