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________________ गाहा : धूया जोव्वण-पत्ता वर-रहिया कुल-हरम्मि वसमाणा। तं किंपि कुणइ कज्जं लहइ कुलं मइलणं जेण ।।१२०।। संस्कृत छाया : दुहिता यौवन-प्राप्ता वररहिता कुलगृहे वसन्ती । तत् किमपि करोति कार्यं लभते कुलं मलीनतां येन ।। १२०।। गुजराती अर्थ :- यौवनने प्राप्त, पति वगरनी छोकरी घरमा रही अयोग्य कांई पण कार्य करे तो तेथी कुल मलीनता ने पामे। हिन्दी अनुवाद :- यौवन को प्राप्त, शादी किए बिना लड़की घर में रहकर कुछ अयोग्य कार्य कर बैठे तो अपना कुल मलिनता को प्राप्त हो सकता है। गाहा : को होज्ज वरो धूयाए हंदि! मण-इच्छिउत्ति चिंताए। सुंदर! न एइ निद्दा रयणीएवि मह पसुत्तस्स।।१२१।। संस्कृत छाया : को भवेद् वरो दुहितु र्हन्दि मन इच्छित इति चिन्ताया। सुन्दरि ! नैति निद्रा रजन्यामपि मे प्रसुप्तस्य ||१२१।। गुजराती अर्थ :- आ दीकरीनो मनोवल्लभ भर्तार कोण हशे? ए चिन्तामा हे सुन्दरि! सुवा छतां मने रात्रे पण उँघ नथी आवती! हिन्दी अनुवाद :- इस बेटी का मनोवल्लभ पति कौन होगा? हे सुन्दरी! इस चिन्ता से रात्रि में सोने पर भी मुझे नींद नहीं आती है। गाहा : एयं निसम्म वयणं चंपगमालावि ताहि मे जणणी। मज्झ निमित्ते संदर! जाया सोगाउरा धणियं।।१२२।। संस्कृत छाया : एवं निशम्य वचनं चम्कमालापि तदा मे जननी। मन्निमित्ते सुन्दर! जाता शोकातुरा अत्यन्तम् ।। १२२|| गुजराती अर्थ :- पिताजीना आ प्रमाणेना वचन सांभळीने त्यारे मारी माता पण मारा कारणे हे सुन्दर! अत्यंत शोकातुर थई! हिन्दी अनुवाद :- हे सुन्दर! पिताजी के ऐसे वचन सुनकर मेरी माता भी मेरे लिए अत्यंत शोक करने लगी! गाहा : अन्न-दिणम्मि पिय-सही पभाय-समयम्मि धारिणी- नामा। सुज्जापहस्स धूया समागया मज्झ पासम्मि ।।१२३।। 358 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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