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________________ श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ जुलाई-सितम्बर २००८ जैनशास्त्रों में विज्ञानवाद डॉ० कमलेश कुमार जैन* दर्शनशास्त्र में चिन्तन की प्रधानता होती है और न्यायशास्त्र में तर्क की। दर्शनशास्त्र में सामान्यतया तत्-तद् दर्शनों के सिद्धान्त पक्ष पर विचार किया जाता है, किन्तु न्यायशास्त्र में सर्वप्रथम अपने पक्ष को प्रस्तुत किया जाता है, तदनन्तर दूसरेदूसरे दार्शनिक पक्षों को प्रस्तुत करते हुए तत्-तद् दर्शनों के सिद्धान्तों को प्रस्तुत कर विभिन्न तर्कों के माध्यम से उनका खण्डन किया जाता है और अन्त में अपने सिद्धान्त पक्ष की पुष्टि की जाती है। अर्थात् एक प्रकार से अपने दार्शनिक सिद्धान्तों को तर्क की कसौटी पर कसकर खरा सिद्ध करना और दूसरे दार्शनिक सिद्धान्तों का खण्डन कर के अन्त में विविध तर्कों के माध्यम से अपने सिद्धान्त की पुष्टि करना न्यायशास्त्र की पद्धति है। न्यायशास्त्र में सत्तों के माध्यम से अपने शास्त्रीय पक्ष को प्रस्तुत करना एक समीचीन परम्परा है, किन्तु जब अपने पक्ष की पुष्टि के लिये जल्प, वितण्डा एवं छल का सहारा लिया जाता है तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अपना पक्ष प्रस्तुत करने वाले के तर्कों का खजाना रिक्त हो गया है। अन्यथा जल्प, वितण्डा और छल जैसे शस्त्रों की शुद्ध बौद्धिक चिन्तन में आवश्यकता ही नहीं है। बुद्धि का कार्य है सत्तों के माध्यम से अपने-अपने पक्ष को प्रस्तुत करना, न कि हारने की स्थिति में छल-बल का प्रयोग करना। छल-बल का प्रयोग करना वस्तुतः बौद्धिक अजीर्णता है। विविध दार्शनिक प्रस्थानों ने अपने-अपने शास्त्रों में पूर्वपक्ष के रूप में अन्य दार्शनिक प्रस्थानों को प्रस्तुत किया है। जैन न्यायशास्त्रीय ग्रन्थों में भी पूर्वपक्ष के रूप में विविध दार्शनिक प्रस्थानों को प्रस्तुत किया गया है, जिनमें न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, मीमांसा और बौद्ध दर्शन आदि प्रस्थान प्रमुख हैं। श्रमणविद्या की दो प्रमुख शाखाएँ हैं - बौद्ध दर्शन और जैन दर्शन। बौद्ध दर्शन भगवान् बुद्ध के उपदेशों का परवर्ती रूप है। भगवान् बुद्ध के महापरिनिर्वाण को प्राप्त हो जाने के बाद उनके उपदेशों की विविध व्याख्याएँ होने लगीं। फलस्वरूप * प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, जैन-बौद्ध दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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