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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८
पाहुड सम्बन्धी उक्त विवेचन से निम्नांकित तथ्य उभरकर सामने आते हैं ... १. 'पाहुड' आगम की एक स्वतन्त्र विधा है। २. 'पाहुड' पूर्वगत वस्तु का एक अधिकार या एक विषय का प्ररूपक
आगमांश है। ३. 'पाहुड' पदों की स्पष्ट व्याख्या है। ४. 'पाहुड' पारम्परिक श्रुतरूप उपहार है। ५. 'पाहुड' लौकिक वस्तुओं का उपहार है। ६. एक 'पाहुड' में चौबीस ‘पाहुड-पाहुड' होते हैं।
'पाहुड' ग्रन्थों की परम्परा में आचार्य गुणधर रचित 'कसायपाहुडसुत्त उपलब्ध आद्य ग्रन्थ है, जिसे स्वयं ग्रन्थकार ने पाँचवें ज्ञानप्रवादपूर्व की दशम वस्तु के तीसरे पेज्जपाहुड का अंश बताया है। विद्वानों ने आचार्य कुन्दकुन्द को चौरासी पाहुड ग्रन्थों का कर्ता बतलाया है, किन्तु उनके दंसणपाहुड, चारित्रपाहुड, सुत्तपाहुड, बोधपाहुड, भावपाहुड, मोक्खपाहुड, सीलपाहुड, लिंगपाहुड और समयपाहुड (समयसार) ये नौ पाहुड नामान्त ग्रन्थ ही खोजे जा सके हैं। इनके अतिरिक्त ४३ नामों की सूची डा० ए०एन० उपाध्ये ने प्रवचनसार की अंग्रेजी प्रस्तावना में दी है तथा अन्य छ नाम 'संयम प्रकाश में उपलब्ध हुए हैं। शेष नाम शोध के विषय हैं। सन्दर्भः
१. अनुयोगद्वार टीका, सूत्र-१४७ २. सुदभत्ति, गाथा-९-१० ३. व्यवहारभाष्य, गाथा - १५२८ ४. कसायपाहुड, भाग-१, सम्पा०- पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, पृ० ३२५ ५. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गाथा-३४०-४१ ६. धवला पुस्तक - १३, पृ० २७० ७. नंदीसूत्र, युवाचार्य मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, १९८२,
सूत्र ११०, पृ० २०१ ८. कसायपाहुड, भाग-१, ३२३-२५ ९. वही, पृ० ३२३ १०. स्याद्वादाधिकार, पृ० ३६
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