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________________ गाहा :- चित्रगतिनुं अशोकर्वानकामां आगमन तत्तो तीए समयं पवर-घरुज्जाण-तिलय- भूयाए । वियसंत-सुरहि-मंजरि-मयरंदामोय-सुहयाए ।।८६।। पत्तो रमणीयाए असोग-वणियाए सहरिसं तीए । दिन्नम्मि आसणम्मी उवविट्ठो, सावि मह पुरओ ।।८७।। संस्कृत छाया :ततस्तया समं प्रवरगृहोद्यानतिलकभूतायाम् । विकत्सुरभिमञ्जरी-मकरन्दामोद-सुखदायाम् (शुभगायाम्) ।।८६।। प्राप्तो रमणीयायामशोकवनिकायां सहर्षं तया। दत्ते आसने उपविष्टः साऽपि मे पुरतः ।।८७।। युग्मम्। गुजराती अर्थ :-त्यार पछी तेणीनी साथे श्रेष्ठ वृक्षोथी शोभता गृहोद्यानमा तिलक समान, विकस्वर अने सुगंधित मंजीओ ना मकरन्दथी सुगंधित, (शुभ) सुख ने आपनारी रमणीय अशोकवनिकामां पहोंच्यो, तेणी वड़े सहर्ष अपायेला आसन पर बेठो, तेणी पण मारी आगळ बेठी! हिन्दी अनुवाद :- उसके बाद विकसित और सुगंधित मंजरिओं के मकरन्द से सुगन्धित, सुखदायक, श्रेष्ठ वृक्षों से सुन्दर गृह उद्यान में तिलक तुल्य, अशोक वाटिका में उसके साथ गया! उसके द्वारा हर्षपूर्वक अर्पित आसन पर मैं बैठा और वह भी मेरे सामने बैठी। गाहा : अह सा सज्झस-भरिया जाहे न चएइ किंचि वज्जरिउं । ताहे नियय-पउत्ती सव्वावि हु चित्तवेग! मए ।।८८।। पुव्वं जा तुह कहिया तीएवि हु सा मए समासेण । कहिया य जाव इत्थं इत्थीरूवेण आयाओ ।।८९।। संस्कृत छाया : अथ सा साध्वसभृता यदा न शक्रोति किञ्चित् कथयितुम् । तदा निजकप्रवृत्तिः सर्वाऽपि खलु हे! चित्रवेग! मया ||८८।। पूर्वं या ते कथिता तस्या अपि खलु सा मया समासेन। कथिता च यावदत्र स्त्रीरूपेणाऽऽयातः ||८९|| युग्मम्।। गुजराती अर्थ :- हवे डरथी भरेली ते ज्यारे काई पण कहेवा माटे समर्थ न बनी, त्यारे हे चित्रवेग! में सर्वे पण पोतानी प्रवृत्ति जे पहेला तने कही ते संक्षेपथी में तेणीने पण स्त्रीरूपने धारण कटीने आववा सुधीनी खरेखर बधी वात कही। 348 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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