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________________ गुजराती अर्थ :- अतिभारे मुद्रिकाने जराक काढीने में जोईने तरत ज ओळखी। हिन्दी अनुवाद :- इस अति भारी मुद्रिका को थोड़ी-सी निकाल कर मैंने उसे देखकर, तुरन्त पहचान ली। गाहा : एसा सा मह दइया हत्थि-भए जा विमोइया तइया । विहिणो निओगओ कह जाया हग्गावणापच्छं ।।८।। संस्कृत छाया : एषा सा मम दयिता हस्तिभये या विमोचिता तदा । विधेर्नियोगतः कथं जाता हतापदा पश्चात् ।।६९।। गुजराती अर्थ :- आ ते मारी पत्नी छे जे हाथीना भय थी त्यारे छोडावाई हती, भाग्य योगे ते अपत्ति रहित थया पछी तेणीनु शुं था? हिन्दी अनुवाद :- यह मेरी पत्नी है जो उस समय हाथी के भय से मुक्त की गई, भाग्य योग से यह कन्या आपत्ति रहित हुई। पुन: बाद में क्या हुआ? गाहा : पेच्छ अइदुग्घडंपि हु सहसा कह मज्झ दंसणं जायं? । अणुकूलो अहव विही किंवा तं जं नवि करेइ? ।। ८१।। संस्कृत छाया : पश्य अतिदुर्घटमपि खल सहसा कथं मम दर्शनं जातम? | अनुकूलोऽथवा विधिः किं वा तद् यद् नापि करोति?।।८१।। गुजराती अर्थ :- अरे, जुवो अचानक मने आवु अत्यंत दुर्लभ दर्शन केवी रीते थइ गयु। अथवा जुओ अनुकूल भाग्य जे न करे एवं अहीं शुं छे? हिन्दी अनुवाद :- अरे! देखिए अचानक ही मुझे इसके अत्यन्त दुर्लभ दर्शन कैसे हुए? अथवा भाग्य अनुकूल रहे तो वह क्या है, जो यहाँ न हो? गाहा : एवं विचिंतिऊणं निदंसिओ निय-करो मए तीए। पुव्वं समप्पियाए तीए मुद्दाए संजुत्तो।।८२।। संस्कृत छाया : एवं विचिन्त्य निदर्शितो निजकरो मया तस्याः । पूर्वं समर्पितया तया मुद्रया संयुक्तः।।८२।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे विचारीने में तेणीए पहेला समर्पित करेली मुद्रा वाणो पोलानो हाथ तेणीने बताव्यो!। 346 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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