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________________ हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार मेरे कहने से हर्षसहित उसने सब कुछ किया और पुन: हम दोनों कामदेव के पीछे छुप गये। गाहा :- मित्रनी आज्ञाधी चित्रगतिद्वारा कनकमालाना वस्त्र तथा अलङ्कारादिनुं परिधान चित्तगईवि य तीए नीसेसं निविसिऊण नेवत्थं । उग्घाडिउं दुवारं आरूढो झत्ति सिवियाए ।।४।। संस्कृत छाया : चित्रगतिरपि च तस्या निःशेषं निविश्य नेपथ्यम् । उद्घाट्य द्वारमारुढो झटिति शिबिकायाम् ||४०।। गुजराती अर्थ :- चित्रगति पण तेणीना समस्त वस्त्र अलंकार ने धारण करीने द्वार उघाडीने शीघ्रता थी शिबिका मां बेठो। हिन्दी अनुवाद :- चित्रगति भी बाला के सभी वस्त्र-अलंकार को पहनकर द्वार खोलकर शीघ्रता से शिविका में आरूढ़ हुआ। गाहा : अह तम्मि गए लोए नीसदं जाणिऊण तं भवणं। भणिया य मए एसा सुंदरि! किं इण्हि कायव्वं?।।४१।। संस्कृत छाया : अथ तस्मिन् गते लोके निःशब्दं ज्ञात्वा तद्भवनम्। भणिता च मयैषा सुन्दरि! किमिदानी कर्तव्यम्।।४१।। गुजराती अर्थ :- हवे ते लोक गये छते ते भवन ने शांत जाणी ने में तेने कहयुं, “हे सुन्दरी! हवे आपणे अहीं शुं करवु जोइर?" हिन्दी अनुवाद :- तब सभी लोगों के जाने पर कामदेव के मंदिर को शून्य जानकर मैंने उसे कहा "हे सुन्दरी! हमें अब क्या करना चाहिए? गाहा : ओणयं-मुहीए तीए सज्झस-वस-कंपमाण- गत्ताए । कहकहवि हु उल्लविओ खलंत-अव्वत्त-वाणीए ।। ४२।। गुरु-विरह-पीडियाए पिययम! तं पाविओ तुडि-वसेण। कुणसु सयं जं जुत्तं सरणम्मि समाणया तुज्झ ।।४३।। संस्कृत छाया: अवनतमुख्या तया साध्वसवश कम्पमान गात्रया । कथं-कथमपि खलूल्लपितः स्खलद्-अव्यक्तवाण्या ।।४२|| गुरुविरह-पीडितया प्रियतम! त्वं प्राप्तः त्रुटिवशेन। कुरू स्वयं यद् युक्तं शरणे समानता तव ।।४३।। युग्मम् । 333 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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