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गुजराती अर्थ :- ते सांभळी लज्जाथी अधोमुख थयेली, भयथी कम्पता देहवाळी, केमे करीने भांगी तूटी अस्पष्ट वाणी बोली, 'हे प्रियतम! भारे दुःख थी पीडित एवी मने दैवयोगथी तुं मळयो छे। हुं तारा शरणे समर्पित छु। हवे जेम योग्य लागे तेम तमे करो।' हिन्दी अनुवाद :- ऐसा सुनकर लज्जा से अधोमुखी, भय से कम्पित देहवाली प्रयत्नपूर्वक अस्पष्ट वचन बोली 'हे प्रियतम'! अति दुःख से पीड़ित मुझे भाग्य योग से आप मिले हैं, मैं आपके शरण में समर्पित हूँ, आपको जो उचित लगे वह कीजिए। गाहा :- चित्रवेगद्वारा कनकमाला साथे गांधर्व विवाह
एवं तीए भणिए गंधव्व-विहीए सा मए बाला।
परिणीया तं मयणं देवं काऊण सक्खिणयं ।। ४४।। संस्कृत छाया :
एवं तस्यां भणितायां गान्धर्वविधिना सा मया बाला।
परिणीता तं मदनं देवं कृत्वा साक्षिकम् ।।४४|| गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे तेणी ए कर्तुं त्यारे मदनदेवनी साक्षीए ते बाला ने गन्धर्व विधि पूर्वक हुँ परण्यों। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार बाला के कहने पर मदनदेव को साक्षी मानकर उस बाला के साथ गान्धर्व-विधि द्वारा मैंने विवाह किया। गाहा :
अवणित्तु कमेण तओ सज्झसमेईइ विविह-वयणेहिं ।
खणमेगं रमिऊणं सुत्तो आलिंगिऊण तयं ।। ४५।। संस्कृत छाया :
अपनीय क्रमेण ततः साध्वसमेतस्या विविधवचनैः ।
क्षणमेकं रन्त्वा सुप्त आलिङ्ग्य तकाम् ।।४५|| गुजराती अर्थ :- त्यार पछी क्रमे करीने विविध वचनो द्वारा एणीना भय ने दूर करीने एक क्षण रमीने तेणीने आलिंगन करीने सूई गयो। हिन्दी अनुवाद :- बाद में विविध वचनों द्वारा उसके भय को दूर करके एक क्षण क्रीड़ा करके उससे आलिंगन बद्ध होकर सो गया। गाहा :
निद्दा-विगमे य मए वज्जरियं सुयणु! वच्चिमो इण्डिं ।
एरिसमायरिऊणं न हु जुत्तं अच्छिउं एत्थ ।। ४६।। १. सक्खिणयं = साक्षिकम् २. अवणित्तु = अपनीय, दूरीकृत्य
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