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संस्कृत छाया :
इदानीं पुन न खलु शक्या कर्तुं भङ्गं तु निज-प्रतिज्ञायाः ।
तं मुक्त्वा हृदयदयितं न लगेद् मम करेऽन्यः ||२४|| गुजराती अर्थ :- वळी हवे हुँ अत्यारे मारी प्रतिज्ञा नो भंग करवा माटे पण समर्थ नथी कारण के ते मनोवल्लभ ने छोडी ने मारा हाथ मां अन्य (पुरुष नो) हाथ नहीं स्पर्शे। हिन्दी अनुवाद :- अब तो मैं अपनी प्रतिज्ञा को भंग करने को में समर्थ नहीं हूँ, क्योंकि मनोवल्लभ को छोड़कर अन्य पुरुष का हाथ मेरे हाथ से स्पर्श नहीं करेगा। गाहा :- अन्यच्च
अन्नं च देवयाओ! अलियं जपंति नेय कइयावि।
तंपि हु अनह जायं मज्झ अउन्नेहिं पावाए ।।२५।। संस्कृत छाया :
देवताः! अलीकं जल्पन्ति नैव कदापि ।
तदपि खल्वन्यथा जातं मम अपुण्यैः पापायाः ||२५|| गुजराती अर्थ :- हे! देवताओं! आप क्यारे पण असत्य बोलता नथी तो पण पापी एवा मारा अपुण्यथी अन्यथा थयु! (देव वाणी असत्य थई) हिन्दी अनुवाद :- हे! देवताओं! आप कभी असत्य नहीं बोलते हैं फिर भी मझ जैसे अपुण्य पापी से (असत्य हुआ) अन्यथा हुआ। गाहा :
अहव कवडेण केणवि पिसाय-रूवेण वंचिया तइया।
नहवाहण-भत्तेणं अहवा खयरेण केणावि ।।२६।। संस्कृत छाया :
अथवा कपटेन केनापि पिशाचरूपेण वञ्चिता तदा ।
नभोवाहन भक्तेना (भा) थवा खेचरेण केनापि ।।२६|| गुजराती अर्थ :- अथवा पिशाचरूपवाला कोई कपटी वडे, अथवा नभोवाहन (पति) वडे अथवा - नभोवाहनना भक्त ऐवा कोइपण विद्याधर वडे हुंठगाइ छु। हिन्दी अनुवाद :- अथवा पिशाच रूपवाले किसी कपटी से अथवा नभोवाहन से अथवा नभोवाहान के किसी भक्त विद्याधर से मैं भ्रमित की गई हूँ। गाहा :
ता संपयंपि मा होज्ज मज्झ अभिवंछियत्थ-बाघाओ। भयवं! तुह प्पसाया सिज्झउ मरणं अविग्घेण ।। २७।।
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