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________________ संस्कृत छाया : तस्मात् साम्प्रतमपि मा भवतु ममाभिवाञ्छितार्थव्याघातः । भगवन्! तव प्रसादात् सिध्यतु मरणमविघ्नेन ।।२७।। गुजराती अर्थ :- तेथी हमणा पण मारा इच्छित अर्थमां मने विघ्न न थाय अने भगवन्! तारी कृपाथी मने निर्विघ्ने मरण प्राप्त थाय। हिन्दी अनुवाद :- अभी भी मुझे मेरे इच्छित कार्य में विघ्न न हो एवं हे भगवन्! आपकी कृपा से विघ्न रहित मृत्यु की प्राप्ति हो। गाहा : पिय-विरह-गरुय-मोग्गर-जज्जरिय-मणाए मज्झ पावाए । मरणं होज्ज न होज्ज व अज्जवि आसंकए हिययं? ।।२८।। संस्कृत छाया : प्रियविरहगुरुमुद्गर-जर्जरित-मनसो मे पापायाः | मरणं भवेद् न भवेद् वाऽद्यापि आशङ्कते हृदयम्? ||२८|| गुजराती अर्थ :- प्रिय ना विरह रूपी भारे मुद्गर थी जर्जरित थयेला मनवाळी पापीणी मारूं मरण थशे के नही? तेमां अत्यारे पण हृदय शंका पामे छे! हिन्दी अनुवाद :- प्रिय के विरह तुल्य मुद्गर से जर्जरित हुए मनवाली मेरे जैसी पापिणी की मृत्यु होगी की नहीं? इसकी अभी भी हृदय में शंका है। गाहा: पिय-विरह-दुक्ख-समणं लब्भइ मरणंपि गरुय-पुन्नेहिं । तं जइ हविज्ज इण्डिं सुकयत्था होज्ज ता अहयं ।। २९।। संस्कृत छाया :___ प्रियविरहदुःखशमनं लभ्यते मरणमपि गुरुक-पुण्यैः। तद् यदि भवेदिदानीं सुकृतार्था भवेयं तर्हि अहम् ।।२९।। गुजराती अर्थ :- प्रियविरह ना दुःख ने शमावनारू मरण पण महापुण्य थी प्राप्त कराय छे जो अत्यारे ते प्राप्त थाय तो हुं कृतार्थ थाउं। हिन्दी अनुवाद :- प्रियविरह के दुःख को शान्त करनेवाली मृत्यु भी महापुण्य के उदय से प्राप्त होती है। यदि अभी वह प्राप्त हो तो मैं अपने को कृतार्थ मानूंगी। गाहा :- कनकमालानो प्राणत्याग माहे प्रयत्न एवं भणियं तीए मुक्को अप्पा अहोमुहो झत्ति । तुरियं गंतूण मए छिन्नो अह पासओ तीए ।।३०।। संस्कृत छाया : एवं भणितं तया मुक्त आत्माऽधोमुखो झटिति । त्वरितं गत्वा मया छिन्नोऽथ पाशकस्तस्याः।।३०।। 329 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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