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________________ संस्कृत छाया : दग्घस्य हुतवहेन स चैव यथा औषधं तु लोकस्य। त्वया पीडित-देहा तथा शरणं तवाऽऽलीना ।।१७।। गुजराती अर्थ :- अग्नि वड़े दाझेला लोकोनु अग्नि ज औषध छे तेम तमाराथी पीडित देहवाळी हुं तमारा शरणे ज लीन थई छु। हिन्दी अनुवाद :- अग्नि में दग्ध लोगों को अग्नि ही औषधि है, इसी तरह आपसे पीड़ित देहवाली मैं आपकी ही शरण में लीन हूँ। गाहा : जइ मज्झ तुमं तुट्ठो देहि वरं पत्थिओ मए एयं । मा मह हविज्ज एरिस-विडंबणा अन्न-जम्मेवि ।।१८।। संस्कृत छाया :__ यदि मम त्वं तुष्टो देहि वरं प्रार्थितो मया एनम् । मा मम भवतु ईदृश-विडम्बनाऽन्य-जन्मन्यपि।।१८।। गुजराती अर्थ :- जो तुं मारा उपर प्रसन्न छे तो मारावड़े प्रार्थना करायेल तुं आ वरने आप अने आवी विडम्बना अन्य जन्म मां पण मने ना थाओ! हिन्दी अनुवाद :- यदि तु मुझ पर प्रसन्न है, तो तू मुझे मेरा मनोवांछित यह पतिदेव दे, और ऐसी विडम्बना मेरे साथ अन्य जन्म में भी न हो। गाहा : ताव इमो मह जम्मो पिय-जण-आसाए वोलिओ अहलो। तं चिय दइयं दिज्जसु भयवं! मह अन्न-जम्मेवि ।।१९।। संस्कृत छाया : तावदिदं मम जन्म प्रियजन-आशया गतमफलम् । तमेव दयितं ददस्व भगवन! मह्यमन्य-जन्मन्यपि ।।१९।। गुजराती अर्थ :- प्रियजननी आशावड़े मारो आ जन्म तो निष्फल गयो, पण हे भगवन्! अन्य जन्ममां मने ते ज पति आपजो! हिन्दी अनुवाद :- प्रियजन की आशा से मेरा यह जन्म तो निष्फल गया, किन्तु हे! भगवान्! अन्य जन्म में मुझे ये ही पतिदेव देना। गाहा :- कनकमालानी प्राणत्यागनी इच्छा भो सुप्पइट्ठ! एवं भणिऊणं ताहि कणगमालाए । विअलंत-थूल-अंसुय-पवाह-संसित्त-सिहिणाए ।।२०।। नाणाविह- रयण-विणिम्मियम्मि पसरंत-विमल-किरणम्मि। गब्भ-हर-दार-निहिए रम्मे, · अह तोरणे तीए ।। २१।। Jain Education International 326 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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