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________________ श्रीमद्धनेश्वरसूरिविरचितं सुरसुंदरीचरिअं षष्ठ परिच्छेओ गाहा :- सूर्यास्त इत्थंतरम्मि सूरो भमिऊणं गयण-मंडलमसेसं। अवर-समुदं पत्तो पह-खिन्नो मज्जणत्थं व ।।१।। संस्कृत छाया : अत्रान्तरे सूरो भ्रान्त्वा गगनमण्डल-मशेषम्। अपरसमुद्रं प्राप्तः पथखिन्नो मज्जनार्थमिव ।।१।। गुजराती अर्थ :- एटलीवारमा सूर्य सम्पूर्ण गगनमण्डलमां भमीने थाकी गयेलो होय तेम स्नान माटे पश्चिम समुद्र ने प्राप्त थयो (अस्त पाम्यो) हिन्दी अनुवाद :- इतनी देर में सूर्य सम्पूर्ण गगनमण्डल में घूमने से थका हुआ मानो पश्चिम समुद्र में स्नान करने के लिए गया। गाहा : भणियं च चित्तगइणा अन्नाया एव एत्थ पविसामो। मयणस्स गिहे संपइ पत्थुअ-अत्थस्स हेउम्मि।।२।। संस्कृत छाया : भणितं च चित्रगतिना अज्ञातैवात्र प्रविशावः। मदनस्यगृहे सम्प्रति प्रस्तुतार्थस्य हेतौ ।।२।। गुजराती अर्थ :- अने चित्रगतिए कहयुं अहीं आपणे बो अजाण्या छीट, हवे आपणे प्रस्तुत कार्य माटे कामदेव ना घरमा जइए। हिन्दी अनुवाद :- और (उस वक्त) चित्रगति ने कहा - हम दोनों इस क्षेत्र से अज्ञात हैं, अत: हम प्रस्तुत कार्य के लिए कामदेव के घर चलें! गाहा : तत्तो य मए भणियं एवं होउत्ति उट्ठिया दोवि । उच्चिणिय कइवयाइं पुप्फाइं तत्थ उज्जाणे ।।३।। पबिसिय मयणस्स गिहे पूइय मयणं च एवमुल्लवियं। भयवं! तुह प्पसाया संपज्जओउ इच्छियं अम्ह ।। ४।। युग्मम्। 321 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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