SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया : ततश्च मया भणितमेवं भवत्विति उत्थितौ द्वावपि । उच्चित्य कतिपयानि पुष्पाणि तत्रोद्याने || ३ || प्रविश्य मदनस्य गृहे पूजयित्वा मदनञ्चैवमुल्लपितम् । भगवन् ! तव प्रसादात् संपद्यतामिच्छितमस्माकम् ||४|| युग्मम् ।। गुजराती अर्थ :- त्यारे मे कहयुं “हा आ प्रमाणे थाओ, अने अमे बने उभा थया अने ते उद्यान मां केटलाक फूलों ने चूंटी ने मदननां मंदिर मां प्रवेशीने कामदेव नी पूजा कर्या पछी आ प्रमाणे कहयुं, भगवान् ! आपना प्रसाद थी अमारु इच्छित पूर्ण थाओ ।" हिन्दी अनुवाद :- तब मैंने कहा- हाँ! ऐसा ही हो, ऐसा कहकर हम दोनों खड़े हुए और उद्यान से कितने ही पुष्प चुन के मदन- मंदिर में आकर कामदेव की पूजा करके इस प्रकार कहा कि हे भगवन्! आपकी कृपा से हमारा मनोवाञ्छित पूर्ण हो ! कनकमालानुं कामदेव मंदिरमां आगमन गाहा : एवं भणिऊण तओ दोवि निलुक्का अणंग-पट्टीए । रयणीए जाममित्ते वोलीणे किंचि अहियम्मि ||५|| बहु- परियण- परियरिया गिज्जंता पवर- मंगल - सएहिं । वज्जंतेण य विविहं नाणाविह तूर - निवहेण || ६ || निय - सहि- यणेण सहिया आरूढा उत्तिमाए सिवियाए । कय- मंगलोवयारा सिय- भूसण-भूसिय- सरीरा ।।७।। सिय- वसण- पाउयंगी आबद्ध - सुगंध- कुसुम - आमेला । पत्ता ओ कणगमाला दारे अह काम - गेहस्स ||८| संस्कृत छाया : याममात्रे गते एवं भणित्वा ततो द्वावपि द्वावपि रजन्यां बहुपरिजन - परिवृता गीयमाना प्रवरमङ्गल शतैः । वाद्यमानेन च विविधं नानाविध- तूर्य - निवहेन ||६|| निजसखीजनेन सहिता आरूढोत्तमायां शिबिकायाम् । श्वेतभूषणभूषितशरीरा ||७|| आबद्ध - सुगन्धकुसुमाऽऽपीडा । कामगृहस्य ||८|| द्वारेऽथ प्राप्ता तु कनकमाला गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे प्रार्थना करीने पछी बन्ने कामदेव ना मंदिर नी पाछळ छुपाई गया, एक प्रहर थी कंइक अधिक रात्रि नो समय व्यतीत कृतमङ्गोपचारा श्वेतवसन-प्रावृताङ्गी Jain Education International निलीनावनङ्गपृष्ठे । किञ्चिदधिके ||५|| 322 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy