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________________ जैन इतिहास : अध्ययन विधि एवं मूलस्रोत : ९५ भाष्यों के पश्चात् चूर्णिओं का काल आता है। चूर्णियाँ संस्कृत मिश्रित प्राकृत में एवं गद्य में लिखी गई हैं। इन चूर्णियों में भी अनेक कथानक मिलते हैं। जो भगवान महावीर के काल से लेकर ईसा की छठी-सातवीं शताब्दी तक के अनेक ऐतिहासिक तथ्यों को उद्घाटित करती हैं। ऐसे कथानकों में स्थूलिभद्र का कथानक, नन्द साम्राज्य का कथानक, चाणक्य का कथानक, मौर्य साम्राज्य का कथानक कालक का कथानक और भद्रबाहु द्वितीय एवं वराहमिहिर के कथानक ऐसे हैं, जिनका ऐतिहासिक मूल्य है और जो गुप्तोत्तर काल की राजनैतिक व्यवस्थाओं को समझनें के सम्यक् आधार माने जा सकते हैं। आवश्यकचूर्णि में भरत द्वारा अष्टापद पर्वत पर स्थित जिनालयों की सुरक्षा हेतु यन्त्र - चालित-लौह - मानव (रोबोट) स्थापित करने का जो उल्लेख है वह आज के वैज्ञानिक प्रगति के युग के लिए भी एक चुनौती है। चूर्णियों के पश्चात् लगभग आठवीं शताब्दी से संस्कृत भाषा में आगमिक टीका ग्रंथ लिखे गये। इन ग्रंथों में यद्यपि उनके पूर्ववर्ती आगम और आगामिक व्याख्या साहित्य का ही उपयोग हुआ है, फिर भी इनमें ईसा की ८वीं शताब्दी से लेकर १३वीं शताब्दी तक के भारतीय इतिहास के संदर्भ में और विशेष रूप से जैन इतिहास के संदर्भ में अनेक ऐतिहासिक मूल्य की सामग्री हमें उपलब्ध हो जाती है। मुख्य रूप में इन टीका ग्रन्थों की, जो हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ हैं, उनमें टीकाकार के अतिरिक्त प्रतिलिपिकार अथवा जिनके अध्ययन के लिए ( पठनार्थ) यह प्रतिलिपि लिखी गई उनका भी निर्देश मिलता है, साथ ही जिस गृहस्थ ने ये प्रतिलिपियाँ करवाई, उसका नाम निर्देश ही नहीं बल्कि पूरी वंशावली भी मिल जाती है। इस प्रकार ये टीका ग्रन्थ और उनकी ग्रन्थप्रशस्तियाँ भारतीय इतिहास और विशेष रूप से जैन इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत सिद्ध होते हैं । (ख) ऐतिहासिक चरितकाव्य एवं स्थविरावलियाँ इसी प्रकार परवर्ती काल में अनेक ऐतिहासिक चरितकाव्य भी लिखे गये हैं, जैसे- त्रिशष्टिलाकापुरुषचरित, कुमारपालचरित, कुमारपाल भूपालचरित आदि जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसे ही जैन आगमों विशेष रूप से कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र के प्रारम्भ में जो स्थविरावलियाँ दी गयी हैं वे भी ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व की हैं। उनमें दिए गए अनेक आचार्यों के नाम तथा उनके गण, कुल, शाखा आदि के उल्लेख मथुरा के अभिलेखों में मिलने से उनका ऐतिहासिक महत्त्व स्पष्ट है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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