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________________ ९६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक २ / अप्रैल-जून २००८ (ग) ग्रन्थ प्रशस्तियाँ ऐतिहासिक अध्ययन की दृष्टि से ग्रन्थ प्रशस्तियों का भी अत्यन्त महत्त्व होता है। उनमें लेखक न केवल अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख करता है, अपितु अनेक सूचनाएँ भी देता है, जैसे यह ग्रन्थ किसके काल में, किसकी प्रेरणा से और कहाँ लिखा गया। यह ठीक है कि ग्रन्थ प्रशस्तियों में विस्तृत जीवन परिचय नहीं मिलता किन्तु उनमें संकेत रूप में जो सूचना मिलती है, वह इतिहास लेखन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। (घ) पट्टावलियाँ जैन परम्परा में अनेक पट्टावलियाँ (गुरु-शिष्य परम्परा) भी लिखी गयी हैं। उनमें आचार्यों के सम्बन्ध में उल्लेखित कुछ चमत्कारों को छोड़ दें तो शेष सूचनाएँ जैन संघ के इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण और उपयोगी कही जा सकती हैं। इन स्थविरावलियों और पट्टावलियों में न केवल आचार्य परम्परा का निर्देश होता है, अपितु उसमें कुछ काल्पनिक बातों को छोड़कर अनेक आचार्यों के व्यक्तित्व व कृतित्व के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं। हिमवंत स्थविरावली और नन्दीसंघ पट्टावली जिनकी प्रामाणिता के सम्बन्ध में कुछ प्रश्नचिह्न हैं, फिर भी वे जैनधर्म के इतिहास को एक नवीन दिशा देने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में आज भी शताधिक ऐसी पट्टावलियाँ उपलब्ध होती हैं, जिनके इतिहास लेखन सम्बन्धी महत्त्व को हम नहीं नकार सकते। उनका ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यांकन आवश्यक है। (ङ) प्रबन्ध ग्रन्थ ___ पट्टावलियों के अतिरिक्त अनेक प्रबन्ध भी (१२वीं से १५वीं शती तक) लिखे गये जिनमें कुछ विशिष्ट जैनाचार्यों के कथानक संकलित हैं। इनमें हेमचन्द्र कृत परिशिष्टपर्व, प्रभाचन्द्र कृत प्रभावकचरित, मेरुतुंग कृत प्रबन्धचिन्तामणि, राजशेखर कृत प्रबन्धकोश आदि प्रमुख हैं। इन प्रबन्धों के कथानकों में भी अनेक स्थलों पर आचार्यों के चरित में अलौकिकता का मिश्रण है। आज उनकी सत्यता का हमारे पास कोई आधार नहीं है, फिर भी इन प्रबन्धों में अनेक ऐतिहासिक तथ्य निहित हैं। (च) चैत्य-परिपाटियाँ स्थविरावलियों, पट्टावलियों, प्रबन्धों के अतिरिक्त जैन इतिहास की महत्त्वपूर्ण विधा चैत्य-परिपाटियाँ या यात्रा-विवरण है जिसमें विभिन्न तीर्थों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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