SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक २ / अप्रैल-जून २००८ उपदेशों की प्रमाणिकता को सम्यक् प्रकार से जाना जा सकता है। इस प्रकार अर्धमागधी आगम साहित्य के इन ग्रंथों में भारतीय इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री संकलित है। ____ आगामिक मूल ग्रंथों पर कालान्तर में नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, वृत्ति, विवरण, टिप्पण और टब्बे लिखे गये। इन सभी आगामिक व्याख्या ग्रंथों में भी ऐतिहासिक महत्त्व की विपुल सामग्री भरी हुई है। कालक्रम की दृष्टि से आगमों पर सर्वप्रथम नियुक्तियाँ लिखी गईं। मेरी दृष्टि में नियुक्तियों का काल ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी के लगभग माना जा सकता है और इनके रचनाकार के रूप में कल्पसूत्र की पट्टावली में उल्लेखित गौतम गोत्रीय आर्यभद्र को माना जा सकता है। ज्ञातव्य है कि इन आर्यभद्र के नाम पर जो भद्रान्वय प्रचलित हुआ था, उसका उल्लेख भी लगभग ईसा की चौथी शताब्दी के विदिशा के रामगुप्त के अभिलेख में मिलता है। नियुक्ति साहित्य में हमें जो ऐतिहासिक उल्लेख मिलते हैं, वे वीर निर्वाण के लगभग ६०० वर्ष पश्चात् तक के हैं। इन उल्लेखों में निर्ग्रन्थ संघ में जमालि आदि सात निह्नवों के होने के उल्लेख हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एवं प्रमाणिक लगते हैं। क्योंकि इन निह्नवों के कुछ सिद्धान्त नैयायिक एवं बौद्धों से प्रभावित लगते हैं। इसी प्रकार नियुक्ति साहित्य में प्रसंगानुसार अनेक कथानकों के नाम निर्देश भी प्राप्त हो जाते हैं। जिनके ऐतिहासिक मूल्य को नकारा नहीं जा सकता। उदाहरण के रूप में आर्यवज्र के द्वारा भद्रगुप्त से पूर्व साहित्य का अध्ययन करना एवं उनका समाधिमरण करवाना आदि से सम्बन्धित कथानक। नियुक्तियों में पादलिप्त, तोसलिपुत्त आदि अनेक जैन आचार्यों के नाम भी उपलब्ध हो जाते हैं, जो जैन इतिहास की महत्त्वपूर्ण कड़ी मानी जा सकती है। नियुक्ति साहित्य के पश्चात् ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी में इन नियुक्तियों पर भाष्य लिखे गये। भाष्य प्राकृत पद्य में उपलब्ध होते हैं। इन भाष्यों में बृहद्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य, निशीथभाष्य और विशेषावश्यकभाष्य विशेष महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। उत्तराध्ययन, जीतकल्प आदि अन्य कुछ भाष्य ग्रंथ मिलते हैं जो आकार में संक्षिप्त हैं। इनमें भी ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी तक की ऐतिहासिक सामग्री और विशेषरूप से भारतीय सांस्कृतिक इतिहास की सामग्री विपुल मात्रा में उपलब्ध है। इस सम्बन्ध में गम्भीर अध्ययन अभी भी अपेक्षित है। ऐतिहासिक दृष्टि से व्यवहारभाष्य में आर्यरक्षित, आर्यसमुद्र, आर्य मंक्षु, आर्य स्कन्दक, खुड्डगणि, गोविन्द, पुष्यभूति, वज्रभूषित आदि के उल्लेख हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy