SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञापना-सूत्र एक समीक्षात्मक अध्ययन : ३ रचना शैली ग्रंथ के प्रारम्भ में मंगल गाथा और ग्रंथ की प्रतिज्ञा के बाद इसके प्रतिपाद्य विषयों का सूचन है । इसमें ३६ विषयों का निर्देश है जिन्हें ३६ प्रकरणों में बाँट दिया गया है । प्रत्येक पद को 'प्रकरण' नाम दिया गया है । आचार्य मलयगिरि पद की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि 'पदं प्रकरणम् अर्थाधिकार इति पर्यायाः' । समग्र ग्रंथ की रचना प्रश्नोत्तर रूप में हुई है । प्रारम्भ के ८१वें सूत्र तक प्रश्नकर्ता और उत्तरदाता का कोई परिचय नहीं मिलता । इसके पश्चात् ८२वें सूत्र में भगवान महावीर और गणधर गौतम का प्रश्नोत्तर रूप में संवाद है। ८३-९२ सामान्य प्रश्नोत्तर तथा ९३ वें सूत्र में पुन: भगवान महावीर और गणधर गौतम का प्रश्नोत्तर है । इसके अतिरिक्त जहां भगवान महावीर और गणधर गौतम के प्रश्नोत्तर हैं उन स्थलों में मुख्य हैं- सूत्र १४८-२११ अर्थात् समग्र दूसरा पद, तीसरे पद में सूत्र २२५.२७५, ३२५, ३३०-३३३; चौथे पद के सभी सूत्र । जिस प्रकार प्रारम्भ में समग्र शास्त्र की अधिकार गाथायें दी गयी हैं उसी प्रकार कितने ही पदों के प्रारम्भ में विषयसंग्रहणी गाथायें भी प्रस्तुत की गयी हैं। जैसे-३, १८ और २० एवं २३वें पद के प्रारम्भ और उपसंहार में गाथायें दी गयी हैं । इसी प्रकार दसवें पद के अन्त में और ग्रन्थ के मध्य में यथावश्यक गाथायें दी गयी हैं । इनमें प्रक्षिप्त गाथाओं को छोड़कर कुल २३१ गाथायें हैं और शेष गद्य पाठ हैं । प्रज्ञापनासूत्र की संग्रहणी गाथाओं का रचयिता कौन है? इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती। प्रस्तुत सम्पूर्ण आगम का श्लोक प्रमाण ७८८७ है। विषय-विभाग प्रज्ञापना के समग्र पदों का विषय जैन-सिद्धान्त-सम्मत है। आचार्य मलयगिरि ने प्रज्ञापना में प्ररूपित विषयों का सम्बन्ध जीव, अजीव आदि सात तत्त्वों के निरूपण के साथ निम्न प्रकार संयोजित किया है : १-२ जीव-अजीव = पद १,३,५,१० और १३ ३ आस्रव = पद १६-२२ ४ बन्ध = पद २३ ५-६-७ संवर, निर्जरा और मोक्ष = पद ३६ में इन पदों के अतिरिक्त शेष पदों में कहीं-कहीं किसी न किसी तत्त्व का निरूपण है। आचार्य मलयगिरि ने जैन दृष्टि से द्रव्य का समावेश प्रथम पद में, क्षेत्र का द्वितीय पद में, काल का चतुर्थ पद में और भाव का शेष पदों में समावेश किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy