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१३० : श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ / जनवरी-मार्च २००८
( नमस्यगीर्वाण ० ), ३८. पार्श्वनाथस्तोत्रम् (पायात्पार्श्व० ), ३९. पार्श्वनातस्तोत्रम् (देवाधीश ० ), ४०. स्तम्भन - पार्श्वनातस्तोत्रम् (समुद्यन्तो ० ), ४१. स्तम्भन - पार्श्वनातस्तोत्रम् (विनयविनमद्० ), ४२. स्तम्भन - पार्श्वनातस्तोत्रम् चित्रकाव्यात्मकम् (शक्तिशूलेषु० ), ४३. स्तम्भन - पार्श्वनातस्तोत्रम् चक्राष्टकम् (चक्रे यस्य नतिः ), ४४. सरस्वती - स्तोत्रम् (सरभसलसद् ० ), ४५. नवकार - -स्तोत्रम् (किं किं कप्पतरु० ) ।
ग्रन्थ के प्रारम्भ में सम्पादक ने सभी ४५ ग्रन्थों का हिन्दी भाषा में सारांश देकर इसे और भी सरल बना दिया है । अन्त में छः परिशिष्ट अत्यन्य ही उपादेय हैं। इसके लिए सम्पादक साधुवाद के पात्र हैं।
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डॉ० विजय कुमार प्राध्यापक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी
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