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श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ जनवरी-मार्च २००८
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साहित्य सत्कार
पुस्तक समीक्षा जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि, सम्पा०- साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय विनयसागर, प्रकाशक- प्राकृत भारती, १३-ए मेन मालवीय नगर, जयपुर, साइजडिमाई, पृष्ठ- ४९+१०+३२६=३८५, मूल्य २६०.०० रुपये।।
जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि, बारहवीं शताब्दी के आचार्य जो नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि के पट्टधर थे, की रचना है। जिनवल्लभसूरि बारहवीं शताब्दी के उद्भट विद्वान् थे। दर्शन, धर्म, व्याकरण, नाट्य आदि विषयों में इनका एकाधिकार था। यद्यपि इन्होंने विविध विषयों पर शताधिक ग्रन्थों की सृजना की थी लेकिन आज सभी उपलब्ध नहीं है। जो उपलब्ध हैं उन्हें ही महोपाध्याय विनयसागर जी ने अपने कुशल सम्पादकत्व में संकलित करने का स्तुत्य प्रयास किया है। उनके इस प्रयास से ज्ञानपिपासुओं को कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। पुस्तक संग्रहणीय है। जिनवल्लभसूरि के जिन ग्रन्थों को संकलित किया गया है उनके नाम हैं
१. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धारप्रकरणम्, २. आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणम्, ३. सर्वजीवशरीरावगाहनास्तवः, ४. पिण्डविशुद्धिप्रकरणम्,५. श्रावकव्रतकुलकम्, ६.पौषधविधिप्रकरणम्,७. प्रतिक्रमण-समाचारी,८.स्वप्रसप्तति, ९.द्वादशकुलकानि, १०. धर्मशिक्षाप्रकरणम्, ११. सङ्घपट्टकः १२. शृंगारशतकाव्यम्,१३. प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतकाव्यम्, १४. चित्रकूटीय-वीरचैत्य-प्रशस्ति १५. चित्रकूटीय-पार्श्वचैत्य-प्रशस्तिः, १६. आदिनाथचरितम् , १७. शान्तिनाथचरितम्, १८. नेमिनाथचरितम्, १९. पार्श्वनाथचरितम्, २०. महावीरचरितम्, २१. वीर-चरित्र, २२. चतुर्विंशति-जिन-स्तुतयः, २३. चतुर्विंशति-जिन-स्तोत्राणि, २४. नंदीश्वर-चैत्य-स्तव, २५. सर्वजिनपञ्चकल्याणक-स्तोत्रम्, २६. सर्वजिन-पञ्चकल्याणक-स्तोत्रम्, २७. महाभक्तिगर्भा सर्वज्ञविज्ञप्तिका, २८. प्रथम-जिन-स्तवनम्, २९. लघु-अजित-शान्ति-स्तवनम्, ३०. स्तम्भन-पार्श्वजिन-स्तोत्रम्, ३१. क्षुद्रोपद्रवहरपार्श्वजिन-स्तोत्रम्, ३२. महावीर विज्ञप्तिका, ३३. महावीरस्वामिस्तोत्रम्, ३४. सर्वजिनेश्वरस्तोत्रम्, ३५. पञ्चकल्याणकस्तोत्रम् (प्रीतिद्वात्रिंशि०), ३६. कल्याणकस्तोत्रम् (पुरन्दर पुर०), ३७. पार्श्वनाथस्तोत्रम्
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