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प्रज्ञापना-सूत्र एक समीक्षात्मक अध्ययन : ५ दार्शनिक शब्दावली में कहा जाय तो इस ग्रंथ में उद्देश, निर्देश और विभाग हैं परन्तु परीक्षा नहीं है। प्रज्ञापना का विशेषण भगवती
पांचवां अंग व्याख्याप्रज्ञप्ति भगवती नाम से अधिक प्रसिद्ध है। प्रज्ञापना को भी 'भगवती' विशेषण दिया गया है जो इसकी विशेषता को दर्शाता है। भगवती में प्रज्ञापनासूत्र की १,२,५,६,११,१५,१७,२४,२५,२६ और २७वें पदों में से विषयपूर्ति कर लेने का निर्देश किया गया है । यह सूचित करता है कि उन-उन विषयों की प्रज्ञापन शैली प्रज्ञापना में अधिक व्यवस्थित है। ज्ञातव्य है कि प्रज्ञापना उपांग होने पर भी भगवती आदि का सूचन उसमें नहीं है । महायान बौद्ध दर्शन में प्रज्ञापारमिता नामक ग्रंथ का अधिक महत्त्व है। उसमें अष्टसहस्रिका पारमिता का भी अपरनाम भगवती मिलता है। प्रज्ञापना और जीवाजीवाभिगम
प्रज्ञापना में जीव-अजीव की प्रज्ञापना है तथा जीवाजीवाभिगम में जीवअजीव का अभिगम है । प्रज्ञापना और अभिगम दोनों शब्दों का भावार्थ एक है। दोनों ग्रंथ बाह्य आगम तथा स्थविरकृत हैं । प्रज्ञापना चौथे अंग का उपांग है तो जीवाजीवाभिगम तीसरे अंग स्थानांग का उपांग है। दोनों का मुख्य प्रतिपाद्य एक होने पर एक चौथे अंग
और दूसरे का सम्बन्ध तीसरे अंग से है । प्रश्न उठता है कि क्या इनमें कोई ऐतिहासिक क्रम है?
__जीवाजीवाभिगम का मुख्य विषय जीव-अजीव प्रारम्भ में प्रज्ञापना की भांति ही है। उसमें भी जीव-अजीव में से पहले अजीव का निरूपण करने के बाद जीव का निरूपण हुआ है। जीव निरूपण का क्रम जीवाजीवाभिगम में उनके जो मुख्य भेद हैं, उन्हीं पर आधारित है। क्योंकि पहले संसारी जीवों के दो भेद कर उनके १० प्रभेदों
और पुनः सभी जीवों के दो विभाग कर उनके १० प्रभेदों की चर्चा हुई है । ध्यातव्य है कि स्थानांग में भी १० स्थान हैं और जीव-अजीव से सम्बन्धित एक, दो, तीन
और इसी प्रकार १० तक की संख्या का निरूपण हुआ है, दस तक का निरूपण दोनों में समान है । प्रज्ञापना में यह क्रम आगे बढ़ता है । जीवाजीवाभिगम में प्रज्ञापना और उसके पदों की चर्चा अनेक बार (सूत्र ४, ५, १३, १५, २०, ३५, ३६, ३८,४१, ८६, ९१, १००, १०६, ११३, ११७, ११९-१२२) हुई है। वहां राजप्रश्नीय का उल्लेख भी १०९, ११० तथा औपपातिक" का भी उल्लेख सूत्र १११ में हुआ है। इन सूत्रों के उल्लेख से यह जिज्ञासा सहज रूप से हो सकती है कि इन आगमों के नाम वलभी वाचना के समय सुविधा की दृष्टि से उसमें रखे गये हैं या स्वयं आगम रचयिता स्थविर भगवान ने रखे हैं। यदि लेखक ने रखे हैं तो जीवाभिगम की रचना
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