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जैन दर्शन एवं श्री अरविन्द के दर्शन में चेतना का स्वरूप : एक ... :
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श्री अरविन्द ‘जड़' पर अपना विचार प्रस्तुत करते हुए 'तैत्तिरीयोनिषद्' का ' एक उद्धरण प्रस्तुत करते हैं - जड़द्रव्य ब्रह्म है। जड़वादी जहां जड़ को प्राण या
चेतना का उपादान मानते हैं वही श्री अरविन्द प्राण को जड़ का उपादान मानते हैं। वे जड़ पर विचार करते हुए कहते हैं कि - 'जड़ के सम्बन्ध में विचारणीय प्रश्न यह है कि सबसे अधिक सूचना देने वाला कौन-सा तत्त्व है? श्री अरविन्द कहते हैं कि वह तत्त्व है उसकी घनता, स्पृश्यता, बढ़ती हुई प्रतिरोध-शक्ति, इन्द्रिय-स्पर्श के प्रति दृढ़ प्रतिक्रिया आदि। उनका कहना है कि द्रव्य हमारे आगे जितना अधिक ठोस प्रतिरोध खड़ा करता है और उस प्रतिरोध के कारण इन्द्रिगम्य रूप का ऐसा स्थायित्व लाता है जिस पर हमारी चेतना टिक सकती है, उसी अनुपात में वह हमें वास्तविक प्रतीत होता है। वह जितना ही अधिक सूक्ष्म होता है, उसका प्रतिरोध जितना ही कम ठोस होता है
और इन्द्रियां जिसे थोड़ी देर को ही पकड़ पाती हैं, वह हमें उतना ही कम जड़ या भौतिक प्रतीत होता है। जड़ के प्रति हमारी सामान्य चेतना का यह भाव इस मूलभूत उद्देश्य का प्रतीक है जिसके लिए जड़तत्व की रचना की गयी है।१२
वस्तुतः जड़वाद यह आग्रह करता है कि चेतना का चाहे जितना विस्तार क्यों न हो वह एक भौतिक प्रपंच ही है जिसे इन्द्रियों से अलग नहीं किया जा सकता और चेतना इन्द्रियों का उपयोग करने वाली न होकर उसका परिणाम है। किन्तु श्री अरविन्द कहते हैं कि जड़वादियों का यह मत अन्ततः स्वीकार्य नहीं है क्योंकि हमारी समग्र चेतना की क्षमता हमारे अंगों, हमारी इन्द्रियों, स्नायुओं तथा मस्तिष्क की क्षमता से बहुत अधिक बढ़कर है। इतना ही नहीं हमारे सामान्य विचार और चेतना के लिए भी ये अंग केवल अभ्यासगत यंत्र हैं, उनको पैदा करने वाले नहीं। चेतना मस्तिष्क का उपयोग करती है। उसके ऊर्ध्वमुखी प्रयासों ने ही समस्त मस्तिष्क को पैदा किया है। मस्तिष्क ने न तो चेतना को पैदा किया है, न वह उसका उपयोग करती है। ऐसे दृष्टांत भी हैं जो प्रमाणित करते हैं कि हमारे अंग एकदम अनिवार्य उपकरण नहीं है - उदाहरणार्थ हृदय की धड़कनें जीवन के लिए एकदम अनिवार्य नहीं हैं उसी तरह जैसे श्ववासोच्छवास अनिवार्य नहीं है और न संगठित मस्तिष्क कोष विचार के लिए अनिवार्य है। जिस तरह 'इंजन का निर्माण' बिजली या भाप की चालक शक्ति का कारण या उसकी व्याख्या नहीं हो सकता क्योंकि बिजली या भाप इंजन को चलाता न कि इंजन बिजली या भाप को चलाती है। उसी तरह हमारे शारीरिक अवयव विचार
और चेतना के कारण नहीं हो सकते और न ही उसकी व्याख्या कर सकते हैं। शक्तिपूर्ववर्ती है, भौतिक यंत्र नहीं।३। ___यहां प्रश्न यह उठता है कि जहां (मूर्छा गाढ निद्रा आदि मे) हम निर्जीवता और जड़ता देखते हैं वहां भी मानसिक चेतना का अस्तित्व रहता है, तो क्या यह