________________
•
जैन पोथियों में जैनेतर दृश्य : ४९
नाट्यशास्त्र के चित्र
'कल्पसूत्र' की सचित्र प्रतियों के हाशिये पर भरत के नाट्यशास्त्र के सुन्दर चित्र मिलते हैं। इनके चित्र में परम्परागत शैली को एक छन्दमय गति में दर्शाया गया है। इनमें कलाकार ने नृत्य की विभिन्न मुद्राओं को दिखाया है। इनमें देवशानो पाड़ो 'कल्पसूत्र', 'कालकाचार्य कथा' के हाशिए पर नाट्यशास्त्र के कई चित्र मिलते हैं। कई प्रकार की मुद्राओं में नृत्यरत स्त्रियों को इन हाशियों पर दिखाया गया है।" ये नर्तकियाँ अकेली हैं। इनके चेहरों में कुछ चेहरे गोल व मंगोल प्रकार के हैं व कुछ चेहरे परम्परागत पश्चिम भारतीय शैली में हैं। पान आकार के घाघरे के दामन कभी-कभी पीछे को मुड़ गये हैं। इससे परम्परा में परिवर्तन-सा दिखाई पड़ता है। कई अन्य स्थानों पर इनके घाघरे घेरदार हैं। ऐसे घेरदार घाघरे इस शैली में और कहीं नहीं मिलते हैं। मंगोल प्रकार के चेहरे वाली स्त्रियाँ मिश्रित शैली के उदाहरण हैं जहाँ कलाकार ने चेहरे को ईरानी प्रकार का बनाया है, परन्तु वस्त्र भारतीय प्रकार के बनाये हैं। इससे भारतीय सुल्तानी शैली व परम्परागत पश्चिम भारतीय शैली में परस्पर आदान-प्रदान की प्रक्रिया का पता लगता है। इन गोल चेहरों पर गाल पर लटकती हुई लट, माथे पर बड़ा गोल टीका, दोहरी ठुड्डी भारतीय प्रभाव में हैं। मिश्रित शैली में बनायी गयी इन नर्तकियों में एक नयी स्वच्छन्दता है, रूढ़िगत शैली की स्थिरता का अभाव है।
कई अन्य स्थानों पर इन नर्तकियों का प्रयोग एक विशेष उद्देश्य से किया गया है। इन चित्रण में दो नर्तकियों के सम्मिलित प्रयोग से पूर्ण घट का चित्रण हुआ है। बेल-बूटो के बीच नृत्य संगीत के दृश्य का अंकन है। इन दृश्यों में लयात्मकता और छन्दमय गति दिखाई पड़ती है। नाट्यशास्त्र के ये चित्र पश्चिम भारतीय शैली के अद्भुत उदाहरण है।
विजय यंत्र
विजय यंत्र नामक पट्ट इस समय विक्टोरिया एण्ड अलबर्ट म्यूजियम, लन्दन में है। यह पट्ट विक्रम सं० १५०४ ई० सन् १४४७ में तैयार किया गया था। इस पट्ट में ब्रह्मा, शिव, विष्णु जैसे ब्राह्मण धर्मीय स्रोत से जैन धर्म में स्वीकृत देवताओं के चित्र हैं। अलग-अलग देवताओं को उनके रूप विधान के अनुसार बनाया गया है। इन देवताओं को मेहराब तथा पतले खम्भों से निर्मित अलग-अलग ताखों में अंकित किया गया है। यह दृश्य बहुत ही आलंकारिक प्रतीत होता है। अनेक प्रकार से छोटे से
छोटे स्थान को भी अलंकृत किया गया है। जैन पट्ट में ब्राह्मण स्रोतों से स्वीकृत देवताओं का इतना सही और अलंकारिक चित्रण अपने आप में एक विशेष महत्त्व रखता है। सबसे बड़ी बात है कि जैन परम्पराओं ने इन्हें ग्रहण तो कर लिया पर उनके