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श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००७
जैन पोथियों में जैनेतर दृश्य
डॉ० शैलेन्द्र कुमार *
जैन चित्रों में कुछ ऐसी सामग्री मिलती है जिनको देखने से ऐसा लगता है कि इनका उद्गम अजैन स्रोतों से हुआ है। लेकिन जैन सम्प्रदाय के अन्तर्गत् ब्राह्मणधर्मीय चित्रित चित्रों में थोड़ा बहुत परिवर्तन दिखायी देता है। उदाहरणस्वरूप ब्राह्मणधर्मीय कृष्ण नेमीनाथ के छोटे भाई हैं और कई युद्धों में वे नेमिनाथ से पराजित होते हैं। इस सन्दर्भ में हमें यह मानना चाहिए कि यहाँ पर बनी कृष्ण की आकृति ब्राह्मण धर्म की न होकर जैन धर्म की है। क्योंकि दृश्य देखकर ऐसा लगता है कि मूलतः ये बिम्ब अजैन हैं। परन्तु जैन परम्परा ने इन्हें किसी न किसी रूप में स्वीकार किया गया है। कुषाण काल की एक जैन सरस्वती की प्रतिमा है जो वर्तमान समय में मथुरा संग्रहालय में संग्रहीत है। इस मूर्ति के मौलिक स्वरूप (सरस्वती) को नहीं भुलाया जा सकता। जैन चित्रों को दो भागों विभाजित करके देखा जा सकता है। प्रथम भाग में वे चित्र आयेंगे जिन्हें धर्म निरपेक्ष चित्र की संज्ञा दी जा सकती है, जैसे 'देवशानो पाड़ो कल्पसूत्र' के हाशिये पर अंकित नाट्यशास्त्र रागमाला के चित्र, नवनारी कुंजर के दृश्य आदि हैं और द्वितीय भाग में कुछ ऐसे दृश्यों को रखा जा सकता है जो ब्राह्मण धर्म की परम्परा से जुड़े हैं। इसके अन्तर्गत जैन आकृतियों में शिव, विष्णु, सरस्वती आदि के चित्र आयेंगे।
ब्राह्मण धर्म से प्रभावित जैन आकृतियों के चित्रण की परम्परा पूर्ववर्ती काल से ही चली आ रही है, जैसे मथुरा से कुषाणकालीन नेमीनाथ की मूर्तियों में पार्श्व देवता के रूप में कृष्ण-बलराम की आकृतियाँ भी हमें देखने को मिलती हैं । १५वीं शती में हमें जैन तंत्र के अनुशासन से सम्बन्धित आकृतियाँ प्राप्त होने लगती हैं। जैन पोथियों में धर्म-निरपेक्ष और लौकिक प्रसंग के दृश्य भी हैं जिनमें रागमाला के चित्र विशेष उल्लेखनीय हैं।
रागमाला के चित्र (एस०एम० नवाब संग्रह )
एस०एम० नवाब संग्रह में 'कल्पसूत्र' की एक पोथी है। इस पोथी के हाशिए पर रागमाला का चित्र बना हुआ है।' सामान्य तौर पर रागमाला के चित्रों में ६ राग और प्रत्येक राग की ६-६ रागिनियों सहित ३६ पृष्ठ प्राप्त होते हैं, लेकिन इस प्रति की
* प्रवक्ता, संजय मेमोरियल वोमेन्स कालेज, केराकतपुर, वाराणसी