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________________ श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००७ हठयोग एवं जैनयोग में प्रत्याहार का स्वरूप : ___ एक तुलनात्मक अध्ययन डॉ० राज नारायण सिंह* प्रत्याहार योग-साधना का एक प्रमुख अंग है, जो प्रारम्भिक काल से ही आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में प्रचलित रहा है। 'प्रति' एवं 'आठ' उपसर्गपूर्वक 'ह' धातु से निर्मित प्रत्याहार शब्द का अर्थ है- विरुद्धमार्ग से खींचना अर्थात् इन्द्रियों की बाह्यविषयाभिमुखता का अवरूद्ध होना। प्रत्याहार के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए महर्षि पतंजलि ने कहा है कि चित्त के विषयों से हटने पर या चित्त के आत्माभिमुख होने पर इन्द्रियों की विषयाभिमुखता से निरत होना ही प्रत्याहार है। 'भगवद्गीता' की दृष्टि में इस विषयाभिमुखता में कछुवे के अंग-संकोचन के समान इन्द्रियों की अन्तर्मुखता भी सन्निहित है। प्रत्याहार के सन्दर्भ में हमारे औपनिषदिक वाङ्मय तथा अन्यान्य योगशास्त्रों में विशद् विवेचन उपलब्ध होता है। उपनिषदों में इन्द्रियों को तुरंग (घोड़ों) के रूप में परिलक्षित किया गया है। यम-नचिकेता संवाद में यम ने नचिकेता को समझाया है कि शरीर में जीवात्मा रथ का स्वामी (रथी) है। शरीर ही रथ है, बुद्धि इस रथ का सारथी है, मन लगाम है, इन्द्रियाँ घोड़े हैं, विषय इन घोड़ों के विचरने का मार्ग है। शरीर, इन्द्रिय और मन के साथ चैतन्य जीवात्मा है। जो व्यक्ति सदा विवेकहीन बुद्धि वाला और चंचल मन से युक्त रहता है, उसकी इन्द्रियाँ असावधान सारथी के दुष्ट घोड़ों की भाँति वश में न रहने वाली हो जाती हैं तथा जो सदा विवेकयुक्त बुद्धि तथा वश में किये हुए स्थिर मन से सम्पन्न हैं, उनकी इन्द्रियाँ सावधान सारथी के अच्छे घोड़ों की तरह वश में रहती हैं। 'भगवद्गीता' में भी कहा गया है कि जिस पुरुष की इन्द्रियाँ विषय से निगृहीत हैं, उसी की बुद्धि स्थिर है। इस प्रकार विभिन्न योग-साधना पद्धतियों में प्रत्याहार के स्वरूप का विवेचन हुआ है तथापि प्रस्तुत शोध-निबंध हठयोग और जैनयोग में प्रतिपादित प्रत्याहार के विवेचन तक ही सीमित है। हठयोग साधना-पद्धति में प्रत्याहार का अपना विशिष्ट व महत्त्वपूर्ण स्थान है। हठयोग साधक आसन, प्राणायाम, मुद्रा इत्यादि चरणों का कुशलतापूर्वक * पूर्व शोध-छात्र, दर्शन एवं धर्म विभाग, का०हि०वि०वि०, वाराणसी
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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