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________________ श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००७ जैन दर्शन में प्रत्यभिज्ञान प्रमाण डॉ० भूपेन्द्र शुक्ल* जैन दर्शन में सम्यक्-ज्ञान ही प्रमाण है। आचार्य हेमचन्द्र ने 'प्रमाणमीमांसा' में लिखा है- सम्यगर्थनिर्णयः प्रमाणम् । प्रमाण का विभाजन जैन नैयायिकों ने कई प्रकार से किया है। प्राचीन जैन साहित्य में हमें पंचज्ञान की चर्चा मिलती है- मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान। आचार्य उमास्वाति, जिनका समय ईसा की पहली से तीसरी शती माना जाता है, ने इन्हीं पंचज्ञानों को परोक्ष और अपरोक्ष प्रमाण के रूप में विभाजित करते हुए कहा कि यही पंचज्ञान प्रमाण हैं। लेकिन बाद के आचार्यों ने प्रमाण की स्वतंत्र रूप से व्याख्या की। किन्तु उन्होंने भी ज्ञान और प्रमाण की अभिन्नता को अस्वीकार नहीं किया। क्योंकि जैन दर्शन में ज्ञान को स्व-पर प्रकाशक माना गया है। आचार्य हेमचन्द्र ने प्रमाण का विभाजन विशद्ता तथा अविशद्ता के आधार पर करते हुए कहा है कि जो निर्णय विशद् या स्पष्ट हो वह प्रत्यक्ष प्रमाण है; और जो निर्णय अविशद् हो अर्थात् जिसकी उत्पत्ति में दूसरे प्रमाण की अपेक्षा हो वह परोक्ष प्रमाण है। इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्यक्ष की तरह परोक्ष प्रमाण भी सम्यक् निर्णय रूप होता है, किन्तु प्रत्यक्ष प्रमाण विशद् होता है। दोनों ही प्रमाणों के स्वरूप में यही अन्तर है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी 'प्रमाणमीमांसा' में परोक्ष प्रमाण के पाँच भेदोंस्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क (ऊह) अनुमान और आगम का उल्लेख किया है। जैन नैयायिकों ने स्मृति, प्रत्यभिज्ञान एवं तर्क को पृथक् प्रमाण के रूप में प्रतिष्ठित किया है। प्रत्यभिज्ञान प्रमाण एक संकलनात्मक ज्ञान है, जिसमें दो प्रकार के अनुभव प्रत्यक्ष और स्मरण का समावेश होता है। प्रथम अनुभव वर्तमान काल का होता है तथा दूसरा भूतकाल का। जिस ज्ञान में प्रत्यक्ष और स्मरण इन दोनों का संकलन रहता है, वह ज्ञान प्रत्यभिज्ञान कहलाता है। आचार्य विद्यानन्द ने प्रत्यभिज्ञान के दो भेद- एकत्व प्रत्यभिज्ञान तथा सादृश्य प्रत्यभिज्ञान किया है, जबकि माणिक्यनन्दी' ने प्रत्यभिज्ञान प्रमाण की उपरोक्त परिभाषा का समर्थन कर उसके चार प्रकारोंएकत्व प्रत्यभिज्ञान, सादृश्य प्रत्यभिज्ञान, वैसादृश्य प्रत्यभिज्ञान और प्रातियोगिक प्रत्यभिज्ञान का निरूपण किया है। * पूर्व शोध छात्र, दर्शन एवं धर्म विभाग, का०हि०वि०वि०, वाराणसी
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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