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मध्ययुगीन संत-काव्य में जैन न्याय की निक्षेप-पद्धति : ३७
. सन्दर्भ :
१. अनुयोगद्वारसूत्र,८
तत्त्वार्थसूत्र, १/५ सन्मतिसूत्र, १/६ करत विचार मन ही मन उपजी, नां कही गया न आयो। कहै कबीर संसा सब छूटो, राम रतन धन पायो ।।
कबीर ग्रन्थावली पद-२३, पृ० ४९ चेतन-चेतन निकिसिओ नीरु। सोजल निरमलु कथत कबीरु।। वही क्यंचित जोग राम मैं जानां ।। कबीर कहै मै कथि गया, कथि गया ब्रह्म महेस । राम नाम तत सार है, सब काहू उपदेश ।।
चतुर्वेदी, परशुराम, संतकाव्य के प्रेरणास्रोत, पृ० १३२ अलख निरंजन लखै न कोई, निरमै निराकार है सोई । सुनि असथूल रूप नहीं रेखा, द्रिष्टि अद्रिष्टि छिप्यो नहीं पेखा।।
कबीर ग्रन्थावली, रमणी-११, पृ० - ५४२ ७. वही, पद - ३४०, पृ० ४५६
चौहान, प्रताप सिंह, संतमत, प्राक्कथन, पृ० ६
तंत्र और संत, पृ० ३१८ १०. दादू दयाल की बानी, भाग-१, पद -२१, पृ० २१ ११. संत-काव्य : पृ०- ३७९ १२. कबीर ग्रन्थावली, सा० -३७, पृ० ८६ १३ सुन्दर ग्रन्थावली, भाग-१, सवैया - ४ (अंग - ३३)