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जैन धर्म और ब्रज :
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अपितु केवलज्ञान तथा मोक्ष प्राप्त कर मथुरा को सदा के लिए सिद्धपीठ बना दिया। 'मथुरा का जैन चौरासी क्षेत्र जैनियों की आज भी पुण्य तीर्थस्थली है। जैन मान्यताओं
के अनुसार अन्तिम केवली जम्बूस्वामी ने यहीं तपस्या की थी और उनका निर्वाण (४६५ ई०पू०) भी यहीं हुआ था। उन्होंने ५०१ चोरों को साधु बनाया। अतः जम्बूस्वामी की स्मृति में यहाँ ५०१ स्तूप निर्मित किये गये थे। इन स्तूपों को १६वीं शताब्दी ई० तक विद्यमान रहने तथा उनके जीर्णोद्धार कराये जाने के संकेत जैन साहित्य में मिलते हैं।९९
ब्रज में जैन धर्म की प्रबलता का सबसे पुष्ट प्रमाण कंकाली टीले की खुदाई में जैन स्तूप के अवशेषों का प्राप्त होना है। जिसे देवनिर्मित स्तूप की संज्ञा से अभिहित किया गया है। सम्भवतः यह सबसे प्राचीन स्तूप ज्ञात होता है। जैन ग्रन्थ 'विविध तीर्थकल्प' से ज्ञात होता है कि सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के तीर्थ में धर्मरुचि और धर्मघोष नामक दो जैन मुनि थे। वे एक बार विहार (भ्रमण) करते हुए मथुरा पधारे। इन दोनों आचार्यों ने मथुरा के भूतरमण नामक उद्यान में पहुँचकर चातुर्मास की कठोर तपस्या प्रारम्भ कर दी। उनकी साधना से कुबेरा नामक देवी बहुत प्रसन्न हुई और उन जैन मुनियों की प्रेरणा से देवी ने रातों-रात सोने और रत्नों से सुशोभित कलश युक्त सुन्दर स्तूप का निर्माण करा दिया। जिसकी चारों दिशाओं में पंचवर्ण रत्नों की मूर्तियाँ विराजमान थीं। उसमें मूलनायक प्रतिमा सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की थी।
जैन ग्रन्थ 'व्यवहारभाष्य' में एक अनुश्रुति मिलती है, जिसके अनुसार मथुरा में एक देवनिर्मित स्तुप था जिस पर आधिपत्य के लिए जैनों व बौद्धों में द्वन्द्व हुआ था। अन्त में जैनों की जीत हुई और स्तूप पर उनका अधिकार हो गया। इस आख्यान से ऐसा प्रतिध्वनित होता है कि देवनिर्मित स्तूप पर कुछ समय तक बौद्धों का आधिपत्य हो गया था। डॉ० मोतीचन्द्र ने इस अनुश्रुति को सारांश रूप में बड़े ही रोचक ठंग से प्रस्तुत किया है- “एक समय एक जैनमुनि ने मथुरा में तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर एक जैन देवी ने मुनि को वरदान देना चाहा, जिसे मुनि ने स्वीकार नहीं किया। रुष्ट होकर देवी ने रत्नमय स्तूपकी रचना की। स्तूप को देखकर बौद्ध भिक्षुवहाँ उपस्थित हो गये और स्तूप को अपना कहने लगे। बौद्धों और जैनों की स्तूपं सम्बन्धी लड़ाई छः महीनों तक चलती रही। जैन साधुओं ने ऐसी गड़बड़ देखकर उस देवी की आराधना की। जिसका वरदान वे पहले अस्वीकार कर चुके थे। देवी ने उन्हें राजा के पास जाकर यह अनुरोध करने की सलाह दी कि राजा इस शर्त पर फैसला करें कि अगर स्तूपबौद्धों का है तो उस पर गैरिक झंडा फहराना चाहिए और अगर वह जैनों का है तो उस पर सफेद झंडा लहराना चाहिए। रातों-रात देवी ने बौद्धों का केसरिया झंडा बदल कर जैनों