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________________ २४ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००७ नगर था, जिसके अन्तर्गत छियानबे ग्रामों में लोग अपने घरों में और चौराहों पर जिनमूर्ति की स्थापना करते थे। यहाँ जैन श्रमणों का बहुत प्रभाव था। 'निशीथ व' 'ठाणांगसूत्र' में मथुरा की गणना भारत की दस प्रमुख राजधानियों में की गई है तथा अरहन्त-प्रतिष्ठित, चिरकाल प्रतिष्ठित आदि उपाधियों से सम्बोधित किया गया है। जैन-परम्परा के अनुसार जैन तीर्थंकरों का प्राचीन ब्रज से घनिष्ठ सम्बन्ध था। जिनसेनकृत 'महापुराण' के अनुसार भगवान ऋषभनाथ के आदेश से इन्द्र ने इस भूतल पर जिन ५२ देशों (राज्यों) का निर्माण किया था, उनमें एक शूरसेन देश (राज्य) भी था, जिसकी राजधानी मथुरा थी। सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की यह जन्म-स्थली मानी जाती है। यद्यपि इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है तथापि इतना तो सुनिश्चित है कि सुपार्श्वनाथ का मथुरा से कोई विशेष सम्बन्ध रहा होगा, तभी उनकी स्मृति में जैन धर्म का सबसे प्राचीन स्तूप निर्मित हुआ, जिसे देवनिर्मित स्तूप की संज्ञा से अभिहित किया गया है। जैन अनुश्रुति के अनुसार इस देवनिर्मित स्तूप का निर्माण कुबेरा देवी ने सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ के काल में किया था। चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथ जी की पूजा में भी एक स्तूप बनाये जाने की किंवदन्ती है।११ बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ अथवा अरिष्टनेमि की जन्म-स्थली ब्रज क्षेत्र है। शौरिपुर के । यदुवंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय से नेमिनाथ उत्पन्न हुए तथा सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से वासुदेव कृष्ण उत्पन्न हुए। इस प्रकार नेमिनाथ और कृष्ण आपस में चचेरे भाई थे। महाभारत में नेमिनाथ को जिनेश्वर कहा गया है। शौरिपुर का समीकरण विद्वानों ने आगरा जिले में अवस्थित बटेश्वर से किया है। नेमिनाथ एवं कृष्ण के सम्बन्धों की पुष्टि मथुरा से प्राप्त मूर्ति-शिल्प से भी हो जाती है। इन प्राचीन मूर्तियों में बलराम और श्रीकृष्ण के साथ नेमिनाथ का अंकन हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का सम्पर्क भी ब्रज से था। पार्श्वनाथ के समय में स्वर्ण स्तुप को ईंटों से आवेष्टित कर सुरक्षित बनाया गया। बाद में भी इस स्तूप का जीर्णोद्धार होता रहा और ई० दसवीं शती तक 'देवनिर्मित स्तूप' उत्तर भारत का एक प्रमुख जैन केन्द्र रहा।९६ जैन मान्यताओं के अनुसार २४वें एवं अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी ब्रज में विहार किया था। तत्कालीन मथुरा के शासक उदितोदय अथवा भीदाम ने महावीर का स्वागत सत्कार किया था तथा उनसे दीक्षा ली थी। जैन धर्म के इतिहास में मथुरा का आदरणीय स्थान होने का एक कारण यह भी है कि महावीर के शिष्य आचार्य सुधर्मा के उत्तराधिकारी आचार्य जम्बूस्वामी ने न केवल यहाँ निवास किया,
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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