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________________ श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००७ जैन धर्म और ब्रज डा० एस०पी० सिंह * समन्वय प्रधान सांस्कृतिक वातावरण से ओत-प्रोत ब्रज क्षेत्र का गौरवशाली इतिहास लोकविश्रुत है। ब्रज में निवास ही मोक्ष प्राप्ति का हेतु है जैसा कि सप्तमोक्ष प्रदायिका नगरों में मथुरा की गणना से स्वतः सिद्ध है। ब्राह्मण, जैन एवं बौद्ध - ये तीनों धर्म मथुरा के समन्वय प्रधान सांस्कृतिक वातावरण में फलते-फूलते रहे। सम्भवतः यह मथुरा ही है, जहाँ इन तीनों धर्मों को फलने-फूलने का उचित वातावरण हजारों वर्षों तक मिलता रहा। भगवान कृष्ण ने मथुरापुरी में जन्म लेकर जिस योग की निष्ठा को अपने जीवन में मूर्तिमान किया, उसी अविचल निष्ठा के सूत्र को हम तीर्थंकरों के जीवन में पिरोया हुआ पाते है। जैन धर्म अत्यन्त प्राचीनतम है। इसे छठी शताब्दी ई० पू० के धार्मिक आन्दोलन की परिणति नहीं कहा जा सकता है। छठी शताब्दी ई० पू० आविर्भूत महावीर इस धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे। इनके पहले २३ तीर्थंकर हो चुके थे। महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं थे, किन्तु हम उन्हें छठी शताब्दी ई० पू० के जैन आन्दोलन का प्रवर्तक कह सकते हैं। कुछ विद्वान् जैन धर्म की प्राचीनता प्रागैतिहासिक काल तक ले जाते हैं। हड़प्पा से प्राप्त मस्तकहीन नग्नमूर्ति जैन परम्परा के पूर्णतः अनुकूल है। मुद्राओं पर ध्यानस्थ त्रिशृंगयुक्त मस्तक जैन पद्मासन मूर्ति से तुलनीय है। ये मूर्तियाँ श्रमण परम्परा को प्रतिबिम्बित करती हैं तथा श्रमण परम्परा जैन धर्म के अनुसार ब्राह्मण एवं बौद्ध धर्म से प्राचीनतर है।' वैदिक साहित्य में जैन तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है। 'ऋग्वेद' के केशीसूक्त में श्रमण परम्परा का उल्लेख मिलता है। वस्तुत: जैन धर्म अवैदिक श्रमणधारा उद्भूत हुआ पर वैदिकधारा का भी इसके ऊपर कुछ प्रभाव पड़ा। ' प्राचीन काल से ही जैन धर्म का मथुरा से अटूट सम्बन्ध मिलता है। जैन शास्त्रों में मथुरा विषयक आख्यान विपुल मात्रा में उपलब्ध हैं, जिनका प्रमाणीकरण पुरातत्त्व से भी अभिप्रेत है। प्राचीनतम जैन साहित्य 'ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र' में मथुरा का उल्लेख द्रौपदी स्वयंवर के प्रसंग में हुआ है। तत्पश्चात् उपांग सूत्रों के 'प्रज्ञापनासूत्र' में २५ आर्य देशों में शूरसेन व मथुरा का वर्णन है।' उत्तरापथ में मथुरा एक महत्त्वपूर्ण * प्रदर्शक व्याख्याता, राजकीय संग्रहालय, मथुरा, उ०प्र०
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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