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________________ २० : श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००७ पात्रों में मूल्यवान् पट्टे भी बांधे जाते थे।" पात्रों में तेल, घी आदि का लेप लगाकर उन्हें सुगन्धित द्रव्यों से वासित किया जाता था।" इस प्रकार 'आचारांगसूत्र'" में उन्नत बर्तन कला का दिग्दर्शन प्राप्त होता है। ५. भूषण निर्माण कला- प्राचीन काल में यह कला उन्नतावस्था में थी । 'आचारांगसूत्र' में सुवर्ण एवं बहुविध मूल्यवान मणियों से बने विविध आभूषणों का उल्लेख मिलता है। मणि, मोती, सोना एवं चाँदी के बने कुंडल, करधनी, कड़ा, बाजूबंद, तिलड़ा हार, लम्बी माला, अठारह लड़ों का हार, नौ लड़ों का अर्धहार, एकावली, कनकावली, मुक्तावली एवं रत्नावली हार आदि आभूषणों का युवतियाँ प्रभूत प्रयोग करती थी । अन्यत्र एक स्थल पर रंग-बिरंगे मणि एवं कुण्डल का उल्लेख है - आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं..... । ११ ६. विलेपन निर्माण कला- प्राचीन काल में विविध प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों को मिश्रित कर लेप बनाने की कला उन्नतावस्था में थी । विवाह, दीक्षा काल एवं सामान्य रूप से नवयौवना-युवतियों के द्वारा अपने शरीर पर सुगन्धित लेप लगाये जाते थे। गृष्म ऋतु में चंदनादि शीतल पदार्थों का लेप तैयार किया जाता था । 'आचारांगसूत्र' में अनेक स्थलों पर विलेपन-निर्माण कला का उल्लेख प्राप्त होता है। भगवान महावीर जब दीक्षित हुए थे तो दीक्षा काल में अनेक सुगन्धित द्रव्यों का लेप लगाया गया था। यह एक प्रकार की प्रथा थी जो आज भी उसी रूप में प्रचलित है। भगवान महावीर के शरीर पर किए गए सुगन्धित द्रव्यों के लेप से अनेक जीव आकर्षित होकर उनके शरीर पर आते थे और काटते थे- बहवे पाणजाइया आगम्म। २२ अन्यत्र अनेक स्थलों पर विविध प्रसंगों में विलेपन-द्रव्य का नाम निर्देश प्राप्त होता है। एक स्थल पर स्नान करते समय सुगन्धित - विलेपन एवं शरीर में तेल मालिश का उल्लेख मिलता है । व्याधिकाल में लगाने (मालिश) के लिए भी अनेक प्रकार के विलेपन तैयार किए जाते थे । २४ ७. पंखा एवं सूप निर्माण कला- आवश्यक गृह- उपकरणों में पंखा और सूप का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गर्मी से बचने के लिए तथा अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए विभिन्न प्रकार के पंखों का उपयोग किया जाता था। सूप का प्रयोग अन्न को साफ करने के लिए ही होता था लेकिन कभी-कभी अग्नि को प्रज्वलित करने में भी उसका उपयोग कर लिया जाता था । 'आचारांगसूत्र' में इन दोनों का उल्लेख मिलता है। हवा प्राप्त करने के लिए ताड़पत्र, मयूरपंख एवं वस्त्रादि के पंखे बनाये जाते थेसुप्पेण वा वियणेण वा तालियंटेण वा पत्तेण वा पत्तभंगेण वा...... २५
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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