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________________ आचारांग में भारतीय कला : २१ ८. भोजन कला- वात्स्यायान ने 'विचित्र शाकयूषभक्ष्यविकार क्रिया', ।' तथा शुक्रनीतिसार कर्ता ने 'हीनादिरससंयोगान्नादिसंपाचनम् (नाना रसों से युक्त भोजन बनाना) के रूप में इस कला का उल्लेख किया है। 'आचारांगसूत्र' में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। उस समय समाज-व्यवस्था गरीब और धनवान दो वर्गों में विभाजित थी। दरिद्र लोग रूखा-सुखा भोजन ही तैयार करते थे। 'उपधानश्रुत' में अनेक स्थलों पर तथा अन्यत्र भी ऐसे भोजन का उल्लेख मिलता है। समृद्ध वर्ग में यह कला भी समृद्ध थी। उस समय समाज में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के लोग थे। अनेक अवसरों पर बड़े-बड़े भोज का आयोजन किया जाता था जिसमें अनेक प्रकार के खाद्य-पदार्थ (शाकाहार, मांसाहार)- भोज्य पदार्थ तैयार किए जाते थे। विवाह एवं कन्या की विदाई के अवसर पर भोज, मृतक (श्राद्ध) भोज, प्रीति भोज, यक्ष-यात्रा के समय आयोजित भोज प्रमुख थे।६ उत्तम भोजन में शाकाहार की ही गणना होती थी, जिसमें रसमय पदार्थ, खीर, दही, मक्खन, घी, गुड़, तेल, पूड़ी, राब, पुवा तथा श्रीखण्ड आदि की प्रमुखता थी। एक स्थल पर सांयकालीन भोजन एवं प्रतिराश बनाने का उल्लेख मिलता है- सामासाए पायरासाए।२८ 'उपधानश्रुत' में व्यंजन सहित भोजन, व्यंजन रहित शुष्क भोजन, ठण्डा भोजन, वासी-उड़द, सत्तू एवं चने आदि के आहार का भी निर्देश प्राप्त होता है अवि सूइयं व सुक्कं वा सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु बक्कसं पुलागं वा लद्धे पिंडे अलद्धए दविए ।।२९ ९. पेयद्रव्य निर्माण कला- वात्स्यायन ने 'पानक रसरागासवयोजनम् ' (भित्र-भिन्न पेय तैयार करना) के रूप में इस कला का उल्लेख किया है। 'आचारांगसूत्र' में अनेक स्थलों पर इस कला का निर्देश प्राप्त होता है। श्रीखण्ड, पानक आदि पेयद्रव्यों का निर्माण प्रभूत मात्रा में स्वयं के उपयोग के लिए किया जाता था। फलों से भी पेय-द्रव्य बनाया जाता था, जिनमें आम, अंबाड़ी, कपित्य, बिजौरे, दाख, दाडिम (अनार), खजूर, नारियल, कैर, बेर, आंवले आदि का प्रयोग किया जाता था। मद्यनिर्माण भी किया जाता था।३२ १०. युद्ध कला- 'आचारांगसूत्र' में तत्कालीन विकसित युद्ध कला का निदर्शन प्राप्त होता है। 'उपधानश्रुत' में एक ओर जहाँ दण्डयुद्ध एवं मुष्टियुद्ध का उल्लेख मिलता है- दंडजुधाई मुट्ठिजुद्धाई वहीं गजसेना तथा वीरयोद्धा का निर्देश भी मिलता है। दण्ड, मुष्टि, भाला आदि शस्त्रों के द्वारा युद्ध किया जाता था।६ मनोरंजन के लिए कृत या कारित पशुओं या पक्षियों के युद्ध का वर्णन मिलता है।
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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