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गाहा
एवं विचिंतयंतो पत्तो हं एत्थ कयलि-गेहम्मि ।
काऊण पाय-सोयं उवविट्ठो कुट्टिमुच्छंगे ।। २२८।। संस्कृत छाया
एवं विचिन्तयन् प्राप्तोऽहमत्र कदलीगेहे ।
कृत्वा पादशौचमुपविष्टः कुट्टिमोत्सङ्गे ।। २२८।। गुजराती अर्थ
आ प्रमाणे विचारतो हुँ अहीं कदलीगृहमां (केळना घरमां) आव्यो. अने पग धोईन भूमितल पर बेठो। हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार सोचता हुआ मैं यहाँ कदलीगृह में आया और पैर धोकर पृथ्वीतल पर बैठा।
ताव य खणंतराओ समागया सुयणु! मज्झ निद्दत्ति ।
सोऊण तुज्झ सदं झत्ति पबुद्धो अहं तत्तो ।। २२९।। संस्कृत छाया
तावच्च क्षणान्तरात् समागता सुतनो! मे निद्रेति ।
श्रुत्वा तव शब्दं झटिति प्रबुद्धोऽहं ततः ।।२२९।। गुजराती अर्थ
अने हे सुतनो! क्षण मां मने निद्रा आवी (गई.) तेटलीवाटमा तारा अवाज ने सांपळीने जल्दीथी हु जागी गयो। हिन्दी अनुवाद
और जहां मुझे क्षण में निद्रा आईं, हे सुतनु! की उतनी देर में तेरी आवाज सुनकर मैं जल्दी जग गया। गाहा
केण इमं उल्लवियंति चिंतिउं जा दिसाओ पुलएमि । ताव य तुमं हि दिट्ठो पलंबमाणो तरु- लयाए ।। २३०।।
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