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________________ संस्कृत छाया केनेदमुल्लपितमिति चिन्तयित्वा यावद् दिशः पश्यामि । तावच्च त्वं हि दृष्टः प्रलम्बमानस्तरुलतायाम् ।। २३०।। गुजराती अर्थ कोना वड़े आ प्रमाणे चोलायु आम विचारतो ज्यां सुधीमां दिशाने जोतो हतो तेटलीवारमा निश्चे तसलतामां लटकतो तुं जोवायो। हिन्दी अनुवाद इस प्रकार से कौन बोलता है, ऐसा सोचता था, इतनी देर में तरुलता में लटकते हुए तुम दिखाई दिये। गाहा हा! हा! अणंग-रूवो कह णु जुवाणो विणस्सए लग्गो? । एवं विचिंतिऊणं हाहा-सदं करेमाणो ।। २३१।। . पत्तो तुज्झ समीवे छिन्नो अह पासओ मए सहसा । भो चित्तवेग! सेसं पच्चक्खं चेव तुह सव्वं ।। २३२।।युग्मम्।। संस्कृत छाया हा! हा! अनङ्गरूपः कथं नु युवा विनश्यति लग्नः? । एवं विचिन्त्य हा! हा! शब्दं कुर्वाणः ।।२३१।। प्राप्तस्तव समीपे छिन्नोऽथ पाशको मया सहसा । भोश्चित्रवेग! शेषं प्रत्यक्षमेव ते सर्वम् ।। २३२।। युग्मम्।। गुजराती अर्थ ___ अरे! अरे! कामदेव जेवो युवान शा माटे मरवा तैयार थयोछे? आ प्रमाणे विचारीने हा! हा! र प्रमाणे अवाज करतो. तारी पासे आव्यो अने माय बड़े जल्दीथी पाश छेदायो, अने हे चित्रवेग! बीजु बधु तारे प्रत्यक्ष ज छ। हिन्दी अनुवाद अरे! अरे! (अनङ्गरूप) कामदेव सदृश यह युवा क्यों मरता है? इस प्रकार , सोचकर हा! हा! आवाज करते हुए तेरे पास आया और जल्दी से पाश को तोड़ दिया और हे चित्रवेग! दूसरा सभी तो तुझे प्रत्यक्ष ही है। 312
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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