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________________ संस्कृत छाया हां! हृदय! कस्मात् स्मरसि? निर्बन्धं मुञ्च तस्मिन् लोके । अद्यापि का तवाऽऽशा स्थानमप्यजानानस्य ।।२१६।। गुजराती अर्थ हे हृदय! तुं केम स्मरण करे छे? आग्रह ने छोड? ते लोकमां तेणीना स्थान ने पण नहीं जाणता एवा तारे कई आशा छे? हिन्दी अनुवाद हे हृदय! तु बारबार क्यों याद करता है? आग्रह को छोड़ दे, उस लोक में उसका स्थान भी नहीं जानता, तुझे और कौन-सी आशा है? गाहा अविय जईडज्झसि तदा ता डज्झसुकुट्टसि हे हियय! न हुनिवारेमि । दइयाए जं पउत्तीवि दुल्लहा संपयं जाया ।। २१७।। . संस्कृत छाया अपि च यदि दहसि तदा दह कुट्टयसि हे हृदय! न खलु निवारयामि। दयिताया यत् प्रवृत्तिरपि दुर्लभा साम्प्रतं जाता ।। २१७।। गुजराती अर्थ वळी हे हृदय! तारे चळवु होय तो चळ? कुटवु होय तो कुट हुँ तने रोकीश नहीं। कारण के, मारी पत्नीनी शोध पण अत्यारे दुर्लभ थई छे। हिन्दी अनुवाद पुनः हे हृदय! तुझे जलना हो तो जल, कूटना हो तो कूट। मैं तुझे रोदूंगा नहीं! क्योंकि मेरी पत्नी का पता भी अभि दुर्लभ है। गाहा अहवा किं इमिणा चिंतिएण अइगरुय-विसाय-गब्भेण । अवलंबिय धीरत्तं किंचि उवायं विचिंतेमि ।। २१८।। संस्कृत छाया अथवा किमनेन चिन्तितेनाऽतिगुरुकविषादगर्भेण । अवलम्ब्य धीरत्वं किञ्चिदुपायं विचिन्तयामि ।।२१८।। 306
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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