SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाहा कह व तुडि-जोगओ सा दिट्ठा अम्हेहिं हय-विहि-निओगा? । इण्हिं पुण दट्ठव्वा को जाणइ कत्थ व न वत्ति? ।। २१४।। संस्कृत छाया कथं वा त्रुटियोगतः सा दृष्टा अस्माभिर्हतविधिनियोगात्? । इदानीं पुन द्रष्टव्या को जानाति कुत्र वा न वेति ? ।।२१४।। गुजराती अर्थ अथवा भाग्यदोषने कारणे भूलथी तेणी अमारावडे केम जोवाइ गइ.। हवे कोण जाणे तेणीने क्यांय जोइ शकाय के नही जोइ शकाय। हिन्दी अनुवाद अथवा दुर्भाग्य से गलती से वह बाला हमारे द्वारा क्यों देखी गई, अब कौन जाने उसे कहीं देख सकेंगे या नहीं देख सकेंगे। गाहा तीए नामक्खराइं. विरह-पिसायस्स मंत-भूयाई । सुइ-गोयरं गयाइं न मज्झ हा! कत्थ वच्चामि? ।।२१५।। संस्कृत छाया तस्या नामाक्षराणि विरहपिशाचस्य मन्त्रभूतानि । श्रुतिगोचरं गतानि न मे हा! कुत्र व्रजामि? ।।२१५।। गुजराती अर्थ विरहछपि पिशाचने माटे मन्ध समान तेणीना नामाक्षरो मने संथळाया नही. हा! हवे हुँ क्यां जउं। हिन्दी अनुवाद विरहरूपी पिशाच को शांत करने के लिए मन्त्र समान उनके नामाक्षर भी मेरे श्रुति का विषय नहीं बना, अरे! भाग्य! अब मैं कहाँ जाऊँ? गाहा हा! हियय! कास झूरसि? निब्धं मुंच तम्मि लोयम्मि । अज्जवि का तुह आसा ठाणंपि अयाणमाणस्स? ।। २१६।। 305
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy