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________________ तावच्च तस्या धात्री कतिपय युवतीभिः परिगता झटिति । आगत्योपविष्टा भणति तं मधुरवाण्या ।। १५४ । । युग्मम् ।। गुजराती अर्थ चित्रगति पण तेणी ना अनुयम रूप ने जोई ने तेना मुख उपर स्थापन करेला अनिमेष नयनवाळी ज्यां सुधी रहे छे. त्यांसुधी मां तेणीनी धावमाता केटलीक युवतीओ थी परिवरेली जल्दी थी आवी ने बेटी अने मधुरवाणी वड़े तेने आ प्रमाणे कहे छे। हिन्दी अनुवाद - चित्रगति भी उनके अनुपम रूप को देखकर उनके मुख को अनिमेष नयनों से देखता है। तब तक कुछ ही क्षणों में उनकी धायमाता कितनी युवतियों से परिवृत्त जल्दी आकर बैठी और मधुरवाणी द्वारा इस प्रकार कहने लगी। गाहा पर- कज्ज करण- निरया हवंति किर सज्जणत्ति सच्चवियं । कन्नगमेयं मोयंतएण तुमए गइंदाओ ।। १५५ ।। संस्कृत छाया परकार्यकरणनिरंता भवन्ति किल सज्जना इति सत्यापितम् । कन्यकामेतां मोचयता त्वया गजेन्द्रात् । । १५५ । । गुजराती अर्थ सज्जनी परकार्य करवामां निरत होय ज छे आ उक्ति ने साची करी बनावी छे. कारण के तमे गजेन्द्र थी आ कन्या ने छोडावी । हिन्दी अनुवाद सज्जन पर कार्य में निरत ही रहते हैं। यह उक्ति निश्चित सत्य कर दिखायी है। क्योंकि आपने गजेन्द्र से इस कन्या को छुड़ाया है। गाहा ता निक्कारण- वच्छळ! तुज्झ पभावाओ जीविया एसा । एमाइ बहु-विगप्पं अभिनंदिय सा पुणो भणइ ।। १५६ ।। संस्कृत छाया तस्माद् निष्कारणवत्सल! ते प्रभावाद् जीविता एषा । एवमादि बहुविकल्प - मभिनन्द्य सा पुनर्भणति । । १५६ । । 280
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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