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________________ अपने रक्षक को नहीं देखती, चकमक नयनों से दिशाओं को देखती, युवती को देखकर गगन में रहा चित्रगति इस प्रकार सोचता है। गाहा हा! हा! काम-निहाणं महिला-रयणं विणस्सइ लग्गं । ओयारिऊणं गयणाउ ताहि अकम्मि सा गहिया ।।१४९।। संस्कृत छाया हा! हा! कामनिधानं महिलारत्नं विनश्यति लग्नम् । अवतीर्य गगनात् तदाऽङ्के सा गृहीता ।।१४९।। गुजराती अर्थ __अरे! आ! काम ना भण्डार समान महिला रत्न विनाश पामे छे, एम विचारी ने आकाशथी उतरी ने तेणी ने खोळा मां ग्रहण करी। हिन्दी अनुवाद अरे! यह काम के भण्डार तुल्य महिलारत्न नष्ट हो जायेगा। ऐसा सोचकर आकाश से नीचे उतर कर महिला को अपनी गोद में ले लिया। गाहा चित्तूण सयं सहसा ठाणे निरुवद्दवम्मि नेऊण । सीयल-तरुछाहाए निवेसिया कुट्टिमुच्छंगे ।।१५०।। संस्कृत छाया गृहीत्वा स्वयं सहसा स्थाने निरुपद्रवे नीत्वा । शीतलतरुच्छायायां निवेशिता कुट्टिमोत्सङ्गे ।। १५० ।। गुजराती अर्थ स्वयं सहसा ग्रहण करी ने निरुपद्रव स्थान मां लई जई ने शीतल वृक्ष नी छायामां भूमिना खोळामां बेसाडी। हिन्दी अनुवाद स्वयं सहसा ग्रहण करके निरूपद्रव स्थान में ले जाकर शीतल वृक्ष की छांव में फर्श की गोद में बैठाया। गाहा तत्तो य उत्तरीयक-मिउ-पवणाऽऽसासियाए सो तीए । लज्जा-सज्झस- मउलिय- नयणेहिं पुलोइओ तत्तो।।१५१।। 278
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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