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________________ विघटिताङ्गदयुगला निपतित-कटका प्रणष्ट-ग्रैवेयका। त्रुटित-गुणहार-विगलित-मुक्ताफल-शोभितशरीरा ।।१४३।। संभग्न-नूपुरयुगा भग्नरत्नमालिकानिकरा। भूमितल-लुलितदेहाऽथ दृष्टा तेन सा करिणा ।।१४४।। ।।चतुर्भिः कुलकम् ।। गुजराती अर्थ नवा नीलकमल वा विशाल, चंचल लोचनवाळी, साटी चीते यांगेला कान ना कुंडलवाळी, चोळाई गयेला श्रेष्ठ केश ना समूहवाळी, सुवर्ण नी घुघरी ना समूह थी लटकती कटि मेखला जेनी नाश पामी गई. छे तेवी. हार थी कंईक ढंकायेल स्तनना यारवाळी, खसी गयेला मस्तकना पुष्पोवाळी, तूटी गयेला बाजुचंधवाळी. पडी गयेला कंकणवाळी, तूटी गयेला कंठ ना आवरणवाळी, हाट नो दोरो तूटी जवा थी वेराई गयेला मोतीओ वड़े शोभित शरीरवाळी, भांगी गयेला पायल (झांझर) युगलवाली, तूटेली रत्नमालाना समूहवाळी, भूमि पर आळोटता शरीरवाळी स्त्री ते हाथी वड़े जोवाई। हिन्दी अनुवाद नूतन नीलकमल जैसे विशाल और चञ्चल नयनवाली, अच्छी तरह से भग्न कुण्डल युक्त कानवाली, बिखरे हुए केश के समूहवाली, सुवर्ण की घुघरी का समूह से लम्बायमान कटि मेखला जिसकी नष्ट हुई है, हार से आवृत्त स्तन के बोझ वाली, मस्तक के पुष्प जिसके खिसक गए है, बाजुबंध जिसके नष्ट हो गये है, जिसके कंकण गिर गये हैं, जिसका कंठाभरण टूट गया है, हार का तंतू टूटने से बिखरे हुए मोतियों से सुन्दर देहवाली, भग्न पायल युगलवाली, त्रुटित रत्नमाला के समूहवाली, भूमितल पर लेटते शरीरयुक्त स्त्री को हाथी ने देखा। गाहा तत्तो उज्झिय-हत्थो तीइ वहट्ठाइ करि-वरो चलिओ। तं दट्ट परियरेणं गरुओ हाहा-रवो विहिओ ।।१४५।। संस्कृत छाया तत उज्झितहस्तस्तस्या वधार्थाय करिवरचलितः । तं दृष्ट्वा परिकरण गुरुको हाहारवो विहितः ।। १४५।। गुजराती अर्थ___ऊंची करेली सूंडवाळो ते हाथी तेणी ना वध माटे चाल्यो. ते हाथी ने जोई ने तेणी ना परिवार वाळा मोटो हाहारव कर्यो। 276
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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