SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया अत्रान्तरे एकस्मिन् रथवरे प्रथम-यौवनारम्भा । युवतिरनन्यरूपा बहुविध-वरभूषणाकीर्णा । १३९।। उन्मार्ग- प्रवृत्तैर्जात्यतुरङ्गैर्हस्तित्रस्तैः । भग्ने रथे भूम्यां निपतिता विगतजीवितेव ।। १४० ।।युग्मम्।। गुजराती अर्थ एटलीवारमा एक श्रेष्ठ रथमा एक नवयौवना अनेकविध श्रेष्ठ आभूषणोंथी सज्जित अने अद्वितीय सौंदर्यवाळी युवति, हाथीथी त्रासेला अने उछळकूद करता उत्तम घोडाओ वडे (लइ जवातो) रथ यांग्ये छते भूमितल पर मृत जेवी पडी। हिन्दी अनुवाद इतनी देर में एक श्रेष्ठ रथ में एक नवयौवना अनेक प्रकार के श्रेष्ठ आभूषणों से सज्जित और अद्वितीय सौंदर्यवाली युवति, हाथी से त्रस्त एवं उछलकूद करते उत्तम घोड़ों (द्वारा खींचे जाते) रथ के टूट जाने पर भूमितल पर मृत जैसी (गिर) पड़ी। गाहानव-नीलुप्पल-सच्छह-विसाल-लोलंत- लोयणा वरई। संभग्ग-कन्न- कुंडल-विलुलिय-वर-कुंतल-कलावा ।।१४१।। विच्छिन्न-कणय-खिंखिणि-नियर-पलंबंत-मेहला-दामा । ईसीसि-हार-पच्छन्न-थणहरा गलिय-सिर-कुसुमा ।।१४२।। विहडिय-अंगय-जुयला निवडिय-कडया पणट्ठ-गेविज्जा । तुट्ट-गुण-हार-वियलिय-मुत्ताहल-सोहिय-सरीरा ।।१४३।। संभग्ग- नेउर-जुया मुसुमूरिय-रयण-मालिया-नियरा । भूमि-तल-लुलिय-देहा अह दिट्ठा तेण सा करिणा ।।१४४।।. ॥चतसृभिः कुलकम् ।। संस्कृत छाया नवनीलोत्पलसच्छाय-विशाल-लोलयद्-लोचना वराकी। संभग्न-कर्णकुण्डल-विलुलित-वरकुन्तल-कलापा ।।१४१ ।। विच्छिन्नकनककिङ्किणीनिकर-प्रलम्बमान-मेखलादामनी (दामा) । ईषदीषद्-हार-प्रच्छन्नस्तनभरा गलित-शिरः- कुसुमा ।।१४२।। 275
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy