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________________ गुजराती अर्थ अटलीवारमां मदथी उत्मत्त थयेल कनकप्रभ नो महावत वगरनो महावत हाथी ते नगर थी बहार नीकळयो । हिन्दी अनुवाद इतनी देर में कनकप्रभ का मद से उन्मत्त महावत रहित महाकाय हाथी उस नगर से बाहर निकला। गाहा भजतो गिह-दारे उड्डोसेंतो वरंडए बहुसो । मारितो जण-नियरं उच्छोलिंतो रहे विविहे ।। १३५ ।। अह तं कयंत - सरिसं उड्डीकय-गुरु- करं सुघोर- मुहं । द ट्ठो लोओ दिसो दिसिं मरण-भय- भीओ ।। १३६ ।।।। युग्मम्।। संस्कृत छाया भञ्जन् गृहद्वाराण्युर्ध्वावश्यन् वरण्डकान् बहुशः । मारयन् जननिकरमुन्मूलयन् रथान् विविधान् ।। १३५ ।। अथ तं कृतान्त- सदृशमुवकृत गुरुकरं सुघोरमुखम् । दृष्ट्वा नष्टो लोको दिशो दिशिं मरणभयभीतः ।। १३६ ।। युग्मम् ।। गुजराती अर्थ घर ना दरवाजा ओने तोडतो, अनेक रीते भींतो ने नष्ट करतो, जन समूह ने मारतो, विविध प्रकार ना रथो ने उखाडतो । हवे ऊँची करेली मोटी सूंढवाळा, भयंकर मुखाकृतिवाला यमराज तुल्य ते हाथी ने जोई ने मरण ना भयथी डरेलो लोक एक दिशाथी बीजी दिशा मां भागवा लाग्यो । हिन्दी अनुवाद घर के द्वारों को तोड़ता, बहुत तरह से दीवारों को नष्ट करते, जन-समूह को मारते, विविध प्रकार के रथों को उखाड़ते। अब ऊँची की है दन्तशूल ऐसा भयंकर आकृति युक्त यमराज के तुल्य हाथी को देखकर मरण के भय से लोग एक दिशा से दूसरी दिशा में भागने लगे। गाहा सोवि हु पवहण - निवहं भजतो दंत-पाय- घाएहिं । उच्छोलिंतो सुंडाई हिंडए सव्वओ तत्थ ।। १३७।। 273
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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