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निय-कुल-कलंक-कारय! कत्थ ममं जासि दिट्ठि-पह-पडिओ?। पुरिसो भव एस तुहं सीस-च्छेयं करेमित्ति ।।११३।। एमाइ वाहरंतो चित्तगई गहिय-निसिय-करवालो । अणुमग्गेणुप्पइओ भगिणीए विमोयणट्ठाए ।।११४।।
।।चतसृभिः कुलकम्।। संस्कृत छाया
चित्रलेखा नुं हरणः एवं भणन्तीं तां सहसा आगम्य गृहीत्वा हस्ते । उत्पतितः कनकप्रभः तमालदल-श्यामलं गगनम् ।।१११।। हा! रक्ष रक्ष भ्रातः! हा वल्लभ! कुरु मे परित्रातिम् । एवमादि विलपन्तीं ह्रियमाणां दृष्ट्वा निजभगिनीम् ।।११२।। निजकुलकलङ्ककारक! कुत्र मे यासि दृष्टिपथपतितः? । पुरुषो भव एष तव शीर्षच्छेदं करोमीति ।। ११३।। एवमादि व्याहरन् चित्रगतिगृहीत-निशितकरवालः । अनुमार्गेणोत्पतितो भगिन्या विमोचनार्थाय ।।११४।।
चतुर्भिः कुलकम् ।। गुजराती अर्थ___आ प्रमाणे कहेती तेणी ने सहसा कनकप्रथे आवी ने हाथ मां लई ने तमाल ना पर्ण जेवा श्याम गगन मां उडयो।
हा! भाई! मारी रक्षा करो, रक्षा करो ओ प्रियतम! मारु रक्षण करो। इत्यादि बोलती अपहराती पोतानी बहेन ने जोइ ने.
पोताना कुल ने कलंकित करनार! मारी दृष्टी मां आवेलो तुं क्या जाय छे. तारु पुरुषत्व बताव! आ तलवार थी ज तारु मस्तक छेदूं छु।
इत्यादि बोलतो ग्रहण करेली तीक्ष्णतलवारवाळो चित्रगति बहेन ने छोडाववा माटे तेनी पाछळ दोड़यो। हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार बोलती हुई चित्रलेखा को कनकप्रभ ने आकर सहसा हाथ में लिया और तमाल के पर्ण की भाँति श्याम गगन में उड़ गया।
हा! भैया! मेरी रक्षा करो! रक्षा करो! ओ वल्लभ! मेरी रक्षा करो! इत्यादि वचन को पुकारती अपहरित होती अपनी बहन को देखकर
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