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संस्कृत छाया
चित्रगति नो विचारः तां दृष्ट्वा निजभगिनीं चित्रगतिणति कुत्र त्वं भद्रे! ।
आयाता सुभीषणायामेकाकीन्यत्राटव्याम् ।।१०४।। गुजराती अर्थ
ते पोतानी बहेन ने जोइ ने चित्रगति कहे छे हे अद्रे! तुं अहीं आ अतिभयंकर जंगल मां एकली केवी रीते आवी? हिन्दी अनुवाद
अपनी बहन चित्रलेखा को देखकर चित्रगति कहता है, हे भद्रे! तूं यहाँ इस भीषण जंगल में अकेली कैसे आ गयी? गाहा
कस्स व भएण गाढं कंपसि तं भगिणि! ताहि सा भणइ ।
नयराउ निग्गया हं परियरिया दास-चेडीहिं ।।१०५।। संस्कृत छाया
कस्य वा भयेन गाढं कम्पसे त्वं भगिनि! तदा सा भणति ।
नगरान्निर्गताऽहं परिवृता दासचेटीभिः ।।१०५।। गुजराती अर्थ
अथवा हे चहेन! कोना अय बड़े तुं आटली कम्पे छे? त्यारे तेणीस कहयु दासदासीओ थी परिवरेली हुँ नगर थी निकली। हिन्दी अनुवाद
अथवा हे बहन! किसके भय से तू इतनी काँपती है? तब उसने कहा'कि दासदासी के परिवार से परिवृत्त मैं नगर के बाहर निकली। गाहा
पत्ता उज्जाणम्मी तत्थ मए पूइओ कुसुमबाणो ।
निय-गिहमागच्छंती विमोहिया झत्ति केणावि ।।१०६।। संस्कृत छाया
प्राप्तोद्याने तत्र मया पूजितः कुसुमबाणः । निजगृहमागच्छन्ती विमोहिता झटिति केनाऽपि ।।१०६।।
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