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गाहा
वसुनंदय-खग्ग-करो चित्तगई तस्स रक्खओ जाओ। • सोवि हु अणन्न-चित्तो पारद्धो तं विहिं काउं ।।१०२।। संस्कृत छाया
वसुनन्दक-खड्गकरः चित्रगतिस्तस्य रक्षको जातः ।
सोऽपि खल्वनन्यचित्तः प्रारब्धः तं विधिं कर्तुम् ।।१०२।। गुजराती अर्थ
वसुनन्दक नाम नी तलवार ने ग्रहण की ने चित्रगति तेनो रक्षक थयो अने ते पण एक मन थी ते विधि ने करवा माटे तैयार थयो । हिन्दी अनुवाद
वसुन्दक नाम के खड्ग लेकर चित्रगति ज्वलनप्रभ का अंगरक्षक बना, और ज्वलनप्रभ ने भी एकाग्रता से विधि का प्रारंभ किया! गाहा
अन्न-दिवसम्मि तुरियं आगच्छंती पकंपमाण-तणू ।
दिट्ठा उ चित्तलेहा भय-भीया तम्मि ठाणम्मि ।।१०३।। संस्कृत छाया
भयभीत चित्रलेखा अन्यदिवसे त्वरितमागच्छन्ती प्रकम्पमानतनुः ।
दृष्टा तु चित्रलेखा भयभीता तस्मिन् स्थाने ।।१०३।। गुजराती अर्थ
हवे चीजा दिवसे जल्दी थी आवती कम्पती, डटेली चित्रलेखा ते स्थाने आवेली देखाइ। हिन्दी अनुवाद
अब एक दिन जल्दी से भागती, काँपती, भयभीत चित्रलेखा को उस स्थान में आयी हुई देखी!
गाहा
तं दटुं निय-भगिणिं चित्तगई भणइ कत्थ तं भद्दे । आया सुभीसणाए एक्कल्ला एत्य अडवीए? ।।१०४।।
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