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________________ संस्कृत छाया एषा खलु पुनर्दुर्लभा जाति र्लक्षौघ-सङ्कुलभवे । ' हिण्डमानानां त्राणं न चान्यद् जिनमतं मुक्त्वा ।।८८।। गुजराती अर्थ आ जन्म फी मळवो दुर्लब्ध छे. लाखो जीवोथी व्याप्त आ संसारमां फरता (रखडतां) तेमने जिनेश्वर भगवानना मतने छोडीने बीजुं काई रक्षण नथी. हिन्दी अनुवाद यह मनुष्य जन्म फिर से मिलना दुर्लभ है । लाखों जीवों से व्याप्त इस संसार में घूमते हुए जीवों को जिनशासन के अलावा और कोई रक्षण नहीं है। गाहा तम्हा जिणेहिं भणियं दिक्खं घेत्तूण संजमं काउं । . उज्झिय तो संसारं पावह सिद्धीए पवर-सुहं ।। ८९।। संस्कृत छाया तस्माज्जिनैर्भणितां दीक्षां गृहीत्वा संयमं कृत्वा । उज्झित्वा ततः संसारं प्राप्नुत सिद्धेः प्रवरसुखम् ।।८९।। गुजराती अर्थ आथी संसार ने छोडी ने जिनेश्वर भगवंते कहेल दीक्षा ने ग्रहण की ने संयम नु पालन करीने सिद्धि ना श्रेष्ठ सुख ने पामो! हिन्दी अनुवाद अत: संसार को छोड़कर जिनेश्वर भगवंत द्वारा कथित दीक्षा को स्वीकार कर संयम का पालन कर के सिद्धि के सुख को प्राप्त करो।। गाहा एवं मुणिणा धम्मम्मि साहिए केवि तत्थ पव्वइया । जाया उवासया तह अन्ने सम्मं पवन्नत्ति ।। ९०।। संस्कृत छाया एवं मुनिना धर्मे कथिते केऽपि तत्र प्रव्रजिताः । जाता उपासकास्तथाऽन्ये सम्यक्त्वं प्रपन्ना इति ।।१०।। 254
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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