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गाहा
इय संसारे सारं जं किर पडिहासए विवज्जासा । तंपि हु दुह-सय- उत्ति जाणिउं कुणह जिण धम्मं ।। ८६ ।।
संस्कृत छाया
इति संसारे सारं यत्किल प्रतिभासते विपर्यासात् ।
तदपि खलु दुःखशत हेतुरिति ज्ञात्वा कुरुत जिनधर्मम् ||८६ ।। गुजराती अर्थ
आ प्रमाणे विपरीत बुद्धिने कारणे जे कांई सार्थक देखाय छे ते पण सेंकडो दुःखोनुं कारण छे एम जाणीने जिनधर्मनुं पालन करवु.
हिन्दी अनुवाद
इस मुताबिक विपरीत बुद्धि के कारण जो कुछ भी सार्थक दिखता है वह भी सैकड़ों दुःखों का कारण है। ऐसा जान कर जिनधर्म का पालन करें ।
गाहा
जं दुलहा सामग्गी एसा तुब्भेहिं भव- समुद्दम्मि । पत्ता अपत्त-पुव्वा ता मा तं निष्फलं नेह ।। ८७ ।।
संस्कृत छाया
यद् दुर्लभा सामग्री एषा युष्माभिभर्वसमुद्रे । प्राप्ताऽप्राप्तपूर्वा तस्माद् मा तां निष्फलं नयत ।। ८७ ।। गुजराती अर्थ
भवसमुद्र मां पहेला क्यारे पण नही मेळवेली दुर्लभ सामग्री तमारा बड़े प्राप्त कराई छे तेथी तेने निष्फल ना करो!
हिन्दी अनुवाद
भवसमुद्र में पहले कभी भी नहीं प्राप्त की है ऐसी दुर्लभ सामग्री को प्राप्त की है, तुम उसे निष्फल मत बनाओ।
गाहा
एसा हु पुणो दुलहा जाई लक्खोह संकुल भवम्मि । हिंडंताणं ताणं न य अन्नं जिण-मयं मोत्तुं । । ८८ ।।
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